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________________ पंचम शतक : उद्देशक- ४] [ ४५३ [३२-२ उ.] गौतम ! उन देवों को अनन्त मनोद्रव्य-वर्गणा लब्ध (उपलब्ध) हैं, प्राप्त हैं, अभिसमन्वागत (अभिमुख समानीत सम्मुख की हुई) हैं। इस कारण से यहाँ विराजित केवली भगवान् द्वारा कथित अर्थ, हेतु आदि को वे वहाँ रहे हुए ही जान देख लेते हैं । ३३. अणुत्तरोववातिया णं भंते! देवा किं उदिण्णमोहा उवसंतमोहा खीणमोहा ? गोयमा ! णो उदिण्णमोहा, उवसंतमोहा, नो खीणमोहा। [३३ प्र.] भगवन्! क्या अनुत्तरौपपातिक देव उदीर्णमोह हैं, उपशान्त- मोह हैं, अथवा क्षीणमोह हैं ? [३३ उ.] गौतम! वे उदीर्ण-मोह नहीं हैं, उपशान्तमोह हैं, क्षीणमोह नहीं है । विवेचन – अनुत्तरौपपातिक देवों का असीम मनोद्रव्यसामर्थ्य और उपशान्तमोहत्व प्रस्तुत त्रिसूत्री में अनुत्तरौपपातिक देवों की विशिष्ट मानसिकशक्ति और उसकी उपलब्धि के कारण का परिचय दिया गया है। चार निष्कर्ष (१) अनुत्तरौपपातिक देव स्वस्थान में रहे हुए ही यहाँ विराजित केवली के साथ (मनोगत) आलाप-संलाप कर सकते हैं; (२) वे अपने स्थान में रहे हुए यहाँ विराजित केवली से प्रश्नादि पूछते हैं और केवली द्वारा प्रदत्त उत्तर को जानते देखते हैं; (३) क्योंकि उन्हें अनन्त मनोद्रव्यवर्गणा उपलब्ध प्राप्त और अभिमुखसमानीत हैं, (४) उनका मोह उपशान्त है, किन्तु वे उदीर्णमोह या क्षीणमोह नहीं है। अनुत्तरौपपातिक देवों का अनन्त मनोद्रव्य-सामर्थ्य अनुत्तरौपपातिक देवों के अवधिज्ञान का विषय सम्भिन्न लोकनाड़ी (लोकनाड़ी से कुछ कम) है । जो अवधिज्ञान लोकनाड़ी का ग्राहक (ज्ञाता) होता है, वह असीम मनोवर्गणा का ग्राहक होता ही है; क्योंकि जिस अवधिज्ञान का विषय लोक का संख्येय भाग होता है, वह भी मनोद्रव्यं का ग्राहक होता है, तो फिर जिस अवधिज्ञान का विषय सम्भिन्न लोकनाड़ी है, वह मनोद्रव्य का ग्राहक हो, इसमें सन्देह ही क्या ? इसलिए अनुत्तरविमानवासी देवों का मनोद्रव्यसामर्थ्य असीम है । अनुत्तरौपपातिक देव उपशान्तमोह हैं—– अनुत्तरौपपातिक देवों के वेदमोहनीय का उदय उत्कट नहीं है, इसलिए वे उदीर्णमोह नहीं हैं; वे क्षीणमोह भी नहीं, क्योंकि उनमें क्षपक श्रेणी का अभाव है; किन्तु उनमें मैथुन का कथमपि सद्भाव न होने से तथा वेदमोहनीय अनुत्कट होने से वे 'उपशान्तमोह' कहे गए हैं। १. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक २२३
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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