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________________ ३२४] में समर्थ न हो सका । [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचन की हुई वस्तु को पकड़ने की देवशक्ति और गमनसामर्थ्य में अन्तर——तु दो सूत्रों (सू. ३३-३४) में क्रमशः दो तथ्यों का निरूपण किया गया है— (१) फैंके हुए पुद्गल को पकड़ने की शक्ति महर्द्धिकदेव में है या नहीं ? है तो कैसे है ?, (२) यदि महर्द्धिक देवों में प्रक्षिप्त पुद्गल को पकड़ने की शक्ति है तो शक्रेन्द्र चमरेन्द्र को क्यों नहीं पकड़ सका ? निष्कर्ष (१) मनुष्य की शक्ति नहीं है कि पत्थर, गेंद आदि को फेंक कर उसका पीछा करके उसे गन्तव्य स्थल तक पहुंचने से पहले ही पकड़ सके, किन्तु महर्द्धिक देवों में यह शक्ति इसलिए है कि क्षिप्त पुद्गल की गति पहले तीव्र होती है, फिर मन्द हो जाती है, जबकि महर्द्धिक देवों में पहले और बाद में एक-सी तीव्रगति होती है । (२) असुरकुमार देवों को नीचे जाने में तीव्र गति है, ऊपर जाने में मन्द; जबकि वैमानिक देवों की नीचे जाने में मन्दगति है, ऊपर जाने में तीव्र ; इस कारण से शक्रेन्द्र नीचे जाते हुए चमरेन्द्र को पकड़ नहीं सका । इन्द्रद्वय एवं वज्र की ऊर्ध्वादिगति का क्षेत्रफल की दृष्टि से अल्पबहुत्व ३५. सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरण्णो उड्ढं अहे तिरियं च गतिविसयस्स कतरे कतरेहिंतो अप्पे वा, बहुए वा, तुल्ले वा, विसेसाहिए वा ? गोयमा! सव्वत्थोवं खेत्तं सक्के देविंदे देवराया अहे ओवयइ एक्केणं समएणं, तिरियं संखेज्जे भागे गच्छइ, उड्ढं संखेज्जे भागे गच्छइ । [ ३५ प्र.] हे भगवन्! देवेन्द्र देवराज शक्र का ऊर्ध्वगमन-विषय, अधोगमन विषय और तिर्यग्गमन विषय, इन तीनों में कौन-सा विषय किन-किन से अल्प है, बहुत (अधिक) है और तुल्य (समान) है, अथवा विशेषाधिक है ? [ ३५ उ.] गौतम! देवेन्द्र देवराज शक्र एक समय में सबसे कम क्षेत्र नीचे जाता है, तिरछा उससे संख्येय भाग जाता है और ऊपर भी संख्येय भाग जाता है । ३६. चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुररण्णो उड्ढं अहे तिरियं च गतिविसयस्स कतरे कतरेहिंतो अप्पे वा, बहुए वा, तुल्ले वा, विसेसाहिए वा ? गोयमा! सव्वत्थोवं खेत्तं चमरे असुरिंदे असुरराया उड्ढं उप्पयति एक्केणं समएणं, तिरियं संखेज्जे भागे गच्छइ, अहे संखेज्जे भागे गच्छइ । [३६ प्र.] भगवन्! असुरेन्द्र असुरराज चमर के ऊर्ध्वगमन-विषय, अधोगमन - विषय और तिर्यग्गमन-विषय में से कौन-सा विषय किन-किन से अल्प, बहुत (अधिक), तुल्य या विशेषाधिक है ? १. [३६ उ.] गौतम! असुरेन्द्र असुरराज चमरए, एक समय में सबसे कम क्षेत्र ऊपर जाता है; भगवतीसूत्र अ. वृत्ति
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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