SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 362
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय शतक : उद्देशक-२] [३२१ अतः भगवन् ! मैं (अपने अपराध के लिए) आप देवानुप्रिय से क्षमा मांगता हूँ। आप देवानुप्रिय मुझे क्षमा करें। आप देवानुप्रिय क्षमा करने योग्य (क्षमाशील) हैं। मैं ऐसा (अपराध) पुनः नहीं करूंगा।' यों कह कर शक्रेन्द्र मुझे वन्दन-नमस्कार करके उत्तरपूर्वदिशाविभाग (ईशानकोण) में चला गया। वहाँ जाकर शक्रेन्द्र ने अपने बांये पैर को तीन बार भूमि पर पछाड़ा (पटका)। यों करके फिर उसने असुरेन्द्र असुरराज चमर से इस प्रकार कहा–'हे असुरेन्द्र असुरराज चमर! आज तो तू श्रमण भगवान् महावीर के ही प्रभाव से बच (मुक्त हो) गया है, (जा) अब तुझे मुझ से (किंचित् भी) भय नहीं है; यों कह कर वह शक्रेन्द्र जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में वापस चला गया। विवेचन-चमरेन्द्र द्वारा सौधर्म में उत्पात एवं भगवदाश्रय के कारण शक्रेन्द्रकृत वज्रपात से मुक्ति प्रस्तुत आठ सूत्रों (सू. २५ से ३२ तक) में चमरेन्द्र द्वारा सौधर्मदेवलोक में जा कर उपद्रव मचाने के विचार से लेकर, भगवान् की शरण स्वीकारने से शक्रेन्द्र द्वारा उसके वध के लिए किए गए वज्रपात से मुक्त होने तक का वृत्तान्त दिया गया है। इस वृत्तान्त का क्रम इस प्रकार है (१) पंचपर्याप्तियुक्त होते ही चमरेन्द्र द्वारा अवधिज्ञान से सौधर्मदेवलोक के शक्रेन्द्र की ऋद्धि सम्पदा आदि देखकर जातिगत द्वेष एवं ईर्ष्या के वश सामानिक देवों से पूछताछ। (२) सामानिक देवों द्वारा करबद्ध हो कर देवेन्द्र शक्र का सामान्य परिचय प्रदान। (३) चमरेन्द्र द्वारा कुपित एवं उत्तेजित होकर स्वयमेव शक्रेन्द्र को शोभाभ्रष्ट करने का विचार। (४) अवधिज्ञान से भगवान् का पता लगा कर परिघरत्न के साथ अकेले सुंसुमारपुर के अशोकवनखण्ड में पहुँचकर वहाँ अशोकवृक्ष के नीचे विराजित भगवान् की शरण स्वीकार करके चमरेन्द्र ने उनके समक्ष शक्रेन्द्र को शोभ्भाभ्रष्ट करने का दुःसंकल्प दोहराया। (५) फिर उत्तरवैक्रिय से विकराल रूपवाला महाकाय शरीर बनाकर भयंकर गर्जन-तर्जन, पादप्रहार आदि करते हुए सुधर्मासभा में चमरेन्द्र का सकोप प्रवेश । वहाँ शक्रेन्द्र और उनके परिवार को धमकीभरे अनिष्ट एवं अशुभ वचन कहे। (६) शक्रेन्द्र का चमरेन्द्र पर भयंकर कोप, और उसे मारने के लिए शक्रेन्द्र द्वारा अग्निज्वालातुल्य वज्र-निपेक्ष। (७) भयंकर जाज्वल्यमान वज्र को अपनी ओर आते देख भयभीत चमरेन्द्र द्वारा वज्र से रक्षा के लिए शीघ्रगति से आ कर भगवत् शरण-स्वीकार।। (८) शक्रेन्द्र द्वारा चमरेन्द्र के ऊर्ध्वगमनसामर्थ्य का विचार। भगवदाश्रय लेकर किये गये चमरेन्द्रकृत उत्पात के कारण अपने द्वारा उस पर छोड़े गए वज्र से होने वाले अनर्थ का विचार करके पश्चात्ताप सहित तीव्रगति से वज्र का अनुगमन। (भगवान्) से ४ अंगुल दूर रहा, तभी वज्र को शक्रेन्द्र ने पकड़ लिया। (९) शक्रेन्द्र द्वारा भगवान् के समक्ष अपना अपराध निवेदन, क्षमायाचना एवं चमरेन्द्र को भगवदाश्रय के कारण प्राप्त अभयदान। शक्रेन्द्र द्वारा स्वगन्तव्यप्रस्थान। शक्रेन्द्र के विभिन्न विशेषणों की व्याख्या-मघवं (मघवा)=बड़े-बड़े मेघों को वश में रखने वाला। पागसासणं (पाकशासन)-पाक नाम बलवान् शत्रु पर शासन (दमन) करने वाला। १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) (पं. बेचरदासजी) भा. १, पृ. १४६ से १५०
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy