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________________ बिइओ उद्देसो : समुग्घाया द्वितीय उद्देशक : समुद्घात समुद्घात : प्रकार तथा तत्सम्बन्धी विश्लेषण १—कति णं भंते! समुग्घाया पण्णत्ता ? गोयमा! सत्त समुग्घाया पण्णत्ता, तं जहा—छाउमत्थियसमुग्घायावज्जं समुग्घायपदं णेयव्वं। [तं०-वेदणासमुग्घाए। एवं समुग्घायपदं छातुमत्थियसमुग्घातवज्जं भणियव्वं जाव वेमाणियाणं कसायसमुग्धाया अप्पबहुयं। अणगारस्स णं भंते! भावियप्पणो केवलीसमुग्घाय जाव सासयमणागयद्धं चिट्ठति। ॥बितीय सए बितीयो उद्देसो समत्तो॥ [१ प्र.] भगवन् ! कितने समुद्घात कहे गए हैं? । [१ उ.] गौतम! समुद्घात सात कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं—(१) वेदना-समुद्घात, (२) कषाय-समुद्घात, (३) मारणान्तिक-समुद्घात, (४) वैक्रिय-समुद्घात, (५) तैजस-समुद्घात, (६) आहारक-समुद्घात और (७) केवलि-समुद्घात। यहां प्रज्ञापनासूत्र का छत्तीसवाँ समुद्घात पद कहना चाहिए, किन्तु उसके प्रतिपादित छद्मस्थ समुद्घात का वर्णन यहाँ नहीं कहना चाहिए। और इस प्रकार यावत् वैमानिक तक जानना चाहिए, तथा कषाय-समुद्घात और अल्पबहुत्व कहना चाहिए। [प्र.] हे भगवन्! भावितात्मा अनगार के क्या केवली-समुद्घात यावत् समग्र भविष्यकालपर्यन्त शाश्वत रहता है ? [उ.] हे गौतम! यहाँ भी उपर्युक्त कथनानुसार समुद्घातपद जान लेना चाहिए। (अर्थात्-यहाँ प्रज्ञापनासूत्र के छत्तीसवें समुद्घातपद के सू. २१६८ से सू. २१७६ तक में उल्लिखित सासयमणागयद्धं कालं चिठेति तक का सारा पाठ (वर्णन) समझ लेना चाहिए। विवेचन समुद्घात : प्रकार तथा तत्सम्बन्धी विश्लेषण प्रस्तुत उद्देशक में एक ही सूत्र में समुद्घात के प्रकार, उसके अधिकारी तथा उसके कारणभूत कर्म एवं परिणाम का निरूपण है, किन्तु वह सब प्रज्ञापनासूत्र के ३६वें पद के अनुसार जानने का यहाँ निर्देश किया गया है। समुद्घात-वेदना आदि के साथ एकाकार (लीन या संमिश्रित) हुआ आत्मा कालान्तर में उदय में आने वाले (आत्मा से सम्बद्ध) वेदनीय आदि कर्मों को उदीरणा के द्वारा उदय में लाकर प्रबलतापूर्वक घात करना उनकी निर्जरा करना समुद्घात कहलाता है। १. यह पाठ बहुत-सी प्रतियों में है। पं. बेचरदासजी सम्पादित भगवती टीकानुवाद में भी यह पाठ है। २. पण्णवणासुत्त (मूलपाठ) भा. १, पृ. २३७
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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