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________________ ७३० स्थानाङ्गसूत्रम् वह तेज उस उपसर्ग करने वाले को परितापित करता है और उसे भस्म कर देता है। २. कोई व्यक्ति तथारूप (तेजोलब्धिसम्पन्न) श्रमण-माहन की अत्याशातना करता है, उसकी अत्याशातना करने पर कोई देव कुपित होता है। तब उस देव के शरीर से तेज निकलता है। वह तेज उस उपसर्ग करने वाले को परितापित करता है और परतापित कर उस तेज से उसे भस्म कर देता है। ३. कोई व्यक्ति तथारूप (तेजोलब्धिसम्पन्न) श्रमण-माहन की अत्याशातना करता है। उसके अत्याशातना से परिकुपित वह श्रमण-माहन और परिकुपित देव दोनों ही उसे मारने की प्रतिज्ञा करते हैं। तब उन दोनों के शरीर से तेज निकलता है। वे दोनों तेज उस उपसर्ग करने वाले व्यक्ति को परितापित करते हैं और परितापित करके उसे उस तेज से भस्म कर देते हैं। ४. कोई व्यक्ति तथारूप (तेजोलब्धिसम्पन्न) श्रमण-माहन की अत्याशातना करता है। वह उस अत्याशातना से परिकुपित होता है, तब उसके शरीर से तेज निकलता है, उससे उस व्यक्ति के शरीर में स्फोट (फोड़े-फफोले) उत्पन्न होते हैं। वे फोड़े फूटते हैं और फूटते हुए उसे उस तेज से भस्म कर देते हैं। ५. कोई व्यक्ति तथारूप (तेजोलब्धिसम्पन्न) श्रमण-माहन की अत्याशातना करता है। उसके अत्याशातना करने पर कोई देव परिकुपित होता है, तब उसके शरीर से तेज निकलता है, उससे उस व्यक्ति के शरीर में स्फोट उत्पन्न होते हैं। वे स्फोट फूटते हैं और उसे उस तेज से भस्म कर देते हैं। ६. कोई व्यक्ति तथारूप (तेजोलब्धिसम्पन्न) श्रमण-माहन की अत्याशातना करता है, उसके अत्याशातना करने पर परिकुपित वह श्रमण-माहन और परिकुपित देव ये दोनों ही उसे मारने की प्रतिज्ञा करते हैं। तब उन दोनों के शरीरों से तेज निकलता है। उससे उस व्यक्ति के शरीर में स्फोट उत्पन्न होते हैं। वे स्फोट फूटते हैं और फूटते हुए उसे उस तेज से भस्म कर देते हैं। ७. कोई व्यक्ति तथारूप (तेजोलब्धिसम्पन्न) श्रमण-माहन की अत्याशातना करता है। उससे उस व्यक्ति के शरीर में स्फोट उत्पन्न होते हैं। वे स्फोट फूटते हैं तब उनमें से पुल (फुसियां) उत्पन्न होती हैं। वे फूटती हैं और फूटती हुई उस तेज से उसे भस्म कर देती हैं। ८. कोई व्यक्ति तथारूप (तेजोलब्धिसम्पन्न) श्रमण-माहन की अत्याशातना करता है। उसके अत्याशातना करने पर कोई देव परिकुपित होता है, तब उसके शरीर से तेज निकलता है, उससे उस व्यक्ति के शरीर में स्फोट उत्पन्न होते हैं। वे स्फोट फूटते हैं, तब उनमें पुल (फुसियां) निकलती हैं। वे फूटती हैं और फूटती हुई उस तेज से उसे भस्म कर देती हैं। ९. कोई व्यक्ति तथारूप (तेजोलब्धिसम्पन्न) श्रमण माहन की अत्याशातना करता है उसके अत्याशातना करने पर परिकुपित वह श्रमण-माहन और परिकुपित देव दोनों ही उसे मारने की प्रतिज्ञा करते हैं। तब उन दोनों के शरीरों से तेज निकलता है। उससे उस व्यक्ति के शरीर में स्फोट उत्पन्न होते हैं। वे स्फोट फूटते हैं, तब उनमें से पुल (फुसियां) निकलती हैं। वे फूटती हैं और फूटती हुई उस तेज से उसे भस्म कर देती हैं। १०. कोई व्यक्ति तथारूप (तेजोलब्धिसम्पन्न) श्रमण-माहन की अत्याशातना करता हुआ उस पर तेज फेंकता है। वह तेज उस श्रमण-माहन के शरीर पर आक्रमण नहीं कर पाता, प्रवेश नहीं कर पाता है। तब वह उसके ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर आता-जाता है, दाएं-बाएं प्रदक्षिणा करता है और यह
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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