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________________ ५९० सीधी रेखा के समान है। २. एकतोवा श्रेणी — यद्यपि आकाश की प्रदेश - श्रेणियां ऋजु (सीधी) ही होती हैं तथापि जीव या पुद्गल के मोड़दार गमन के कारण उसको वक्र कहा जाता है। जब जीव और पुद्गल ऋजुगति से गमन करते हुए दूसरी श्रेणी में पहुँचते हैं, तब उन्हें एक मोड़ लेना पड़ता है, इसलिए उसे एकतोवक्रा श्रेणी कहा जाता है। जैसे कोई जीव या पुद्गल ऊर्ध्वदिशा से अधोदिशा की पश्चिम श्रेणी पर जाना चाहता है, तो पहले समय में वह ऊपर से नीचे की ओर समश्रेणी से गमन करेगा। पुनः दूसरे समय में वहां से पश्चिम दिशा वाली श्रेणी पर गमन कर अभीष्ट स्थान पर पहुँचेगा। इस गति में दो समय और एक मोड़ लगने से इसका आकार (L) इस प्रकार का होगा । ३. द्वितोवक्रा श्रेणी - जिस गति में जीव या पुद्गल को दोनों ओर मोड़ लेना पड़े उसे द्वितोवक्रा श्रेणी कहते हैं। जैसे कोई जीव या पुद्गल आकाश-प्रदेशों की ऊपरीसतह के ईशान कोण से चलकर नीचे जाकर नैर्ऋत कोण में जाकर उत्पन्न होता है, तो उसे पहले समय में ईशान कोण से चलकर पूर्वदिशा वाली श्रेणी पर जाना होगा। पुनः वहां से सीधी श्रेणी द्वारा नीचे की ओर जाना होगा। पुनः समरेखा पर पहुंच कर नैर्ऋत कोण की ओर जाना होगा। इस प्रकार इस गति में दो मोड़ और तीन समय लगेंगे। इसका आकार (Z) ऐसा होगा । ४. एकतःखहा श्रेणी— जब कोई स्थावर जीव त्रसनाडी के वाम पार्श्व से उसमें प्रवेश कर उसके वाम या दक्षिणी किसी पार्श्व में या तीन मोड़ लेकर नियत स्थान में उत्पन्न होता है, तब उसके त्रसनाड़ी के बाहर का आकाश एक ओर स्पृष्ट होता है, इसलिए उसे 'एकतःखहा ' श्रेणी कहा जाता है। इसका आकार (C) ऐसा होता है। ५. द्वित: खहा श्रेणी — जब कोई जीव मध्यलोक के पश्चिम लोकान्तवर्ती प्रदेश से चलकर मध्यलोक के पूर्वदिशावर्ती लोकान्तप्रदेश पर जाकर उत्पन्न होता है, तब उसके दोनों ही स्थलों पर लोकान्त का स्पर्श होने से द्वित: खा श्रेणी कहा जाता है। इसका आकार (c) ऐसा होगा । ६. चक्रवाला श्रेणी— चक्र के समान गोलाकार गति को चक्रवाला श्रेणी कहते हैं। जैसे— (0) ७. अर्धचक्रवाला श्रेणी— आधे चक्र के समान आकार वाली श्रेणी को अर्धचक्रवाला कहते हैं। जैसे— (C) इन दोनों श्रेणियों से केवल पुद्गल का ही गमन होता है, जीव का नहीं । अनीक - अनीकाधिपति - सूत्र स्थानाङ्गसूत्रम् ११३ – चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो सत्त अणिया, सत्त अणियाधिपती पण्णत्ता, तं जहा—पायत्ताणिए, पीढाणिए, कुंजराणिए, महिसाणिए, रहाणिए, णट्टाणिए, गंधव्वाणिए । (दुमे पायत्ताणियाधिवती, सोदामे आसराया पीढाणियाधिवती, कुंथू हत्थिराया कुंजराणियाधिवती, लोहितक्खे महिसाणियाधिवती), किण्णरे रधाणियाधिवती, रिट्ठे णट्टाणियाधिवती, गीतरती गंधव्वाणियाधिवती । असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर की सात सेनाएँ और सात सेनाधिपति कहे गये हैं, जैसेसेनाएँ – १. पदातिसेना, २. अश्वसेना, ३. हस्तिसेना, ४. महिषसेना, ५. रथसेना, ६ . नर्तकसेना, ७. गन्धर्व - (गायक -) सेना ।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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