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________________ ३२७ चतुर्थ स्थान-तृतीय उद्देश २. शीलसम्पन्न, न जातिसम्पन्न- कोई पुरुष शीलसम्पन्न होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। ३. जातिसम्पन्न भी, शीलसम्पन्न भी— कोई पुरुष जातिसम्पन्न भी होता है और शीलसम्पन्न भी होता है। ४. न जातिसम्पन्न, न शीलसम्पन्न— कोई पुरुष न जातिसम्पन्न होता है और न शीलसम्पन्न ही होता है (३९४)। ३९५ - [चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जातिसंपण्णे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे, चरित्तसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे]। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. जातिसम्पन्न, न चरित्रसम्पन्न – कोई पुरुष जातिसम्पन्न होता है, किन्तु चरित्रसम्पन्न नहीं होता। २. चरित्रसम्पन्न, न जातिसम्पन्न — कोई पुरुष चरित्रसम्पन्न होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। ३. जातिसम्पन्न भी, चरित्रसम्पन्न भी- कोई पुरुष जातिसम्पन्न भी होता है और चरित्रसम्पन्न भी होता है। ४. न जातिसम्पन्न, न चरित्रसम्पन्न – कोई पुरुष न जातिसम्पन्न होता है और न चरित्रसम्पन्न ही होता है (३९५)। ३९६- [चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–कुलसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, बलसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो बलसंपण्णे]। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कुलसम्पन्न, न बलसम्पन्न- कोई पुरुष कुलसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। २. बलसम्पन्न, न कुलसम्पन्न- कोई पुरुष बलसम्पन्न होता है, किन्तु कुलसम्पन्न नहीं होता। ३. कुलसम्पन्न भी, बलसम्पन्न भी- कोई पुरुष कुलसम्पन्न भी होता है और बलसम्पन्न भी होता है। ४. न कुलसम्पन्न, न बलसम्पन्न – कोई पुरुष न कुलसम्पन्न होता है और न बलसम्पन्न ही होता है (३९६) । ३९७ - [चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—कुलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे]। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कुलसम्पन्न, न रूपसम्पन्न – कोई पुरुष कुलसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। २. रूपसम्पन्न, न कुलसम्पन्न- कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु कुलसम्पन्न नहीं होता। ३. कुलसम्पन्न भी, रूपसम्पन्न भी— कोई पुरुष कुलसम्पन्न भी होता है और रूपसम्पन्न भी होता है। ४. न कुलसम्पन्न, न रूपसम्पन्न – कोई पुरुष न कुलसम्पन्न होता है और न रूपसम्पन्न ही होता है (३९७)। ३९८- [चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—कुलसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपण्णे, सुयसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि सुयसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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