SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छठा अध्ययन : प्रथम उद्देशक: सूत्र ५९२-५९३ २६५ अप्रासुक और अनेषणीय समझकर मिलने पर भी न ले। जैसे यह सूत्र एक सधार्मिक साधु के लिये है, वैसे ही अनेक साधर्मिक साधुओं, एक साधर्मिणी साध्वी एवं अनेक साधर्मिणी साध्वियों के सम्बन्ध में भी शेष तीन आलापक समझ लेने चाहिए। जैसे पिण्डैषणा अध्ययन में चारों आलापकों का वर्णन है, वैसे ही यहाँ समझ लेना चहिए। और पाँचवा आलापक (पिण्डैषणा अध्ययन में ) जैसे बहुत से शाक्यादि श्रमण, ब्राह्मण, आदि को गिन गिन कर देने के सम्बन्ध में है, वैसे ही यहाँ भी समझ लेना चाहिए। ५८१. यदि साधु-साध्वी यह जाने के असंयमी गृहस्थ ने भिक्षुओं को देने की प्रतिज्ञा करके बहुत-से शाक्यादि श्रमण, ब्राह्मण, आदि के उद्देश्य से पात्र बनाया है और वह औद्देशिक, क्रीत आदि दोषों से युक्त है तो ...... उसका भी शेष वर्णन वस्त्रैषणा के आलापक के समान समझ लेना चाहिए। विवेचन – एषणादोषों से युक्त तथा मुक्त पात्र ग्रहण का निषेध-विधान प्रस्तुत सूत्रद्वय में वस्त्रैषणा में बताये हुए विवेक की तरह पात्र-ग्रहणैषणा विवेक बताया गया है। सारा वर्णन वस्त्रैषणा की तरह ही है, सिर्फ वस्त्र के बदले यहाँ पात्र' शब्द समझना चाहिए। बहुमूल्य पात्र-ग्रहण-निषेध ५९२.से भिक्खू वा २ से ज्जाइं पुण पायाइं जाणेजा विरूवरूवाइं महद्धणमोल्लाइं, तंजहा- अयपायाणि वा तउपायाणि वा तंबपायाणि वा सीसगपायाणि वा हिरण्णपायाणी वा सुवण्णपायाणि वारीरियपायाणि वा हारपुडपायाणि वा मणि-काय -कंसपायाणि वा संखसिंगपायाणि वा दंतपायाणि वा चेलपायाणि वा सेलपायाणि वा चम्मपायाणि वा, अण्णयराणि वा तहप्पगाराई विरूवरूवाइं महद्धणमोल्लाइं पायाई अफासुयाइं ३ जाव नो पडिगाहेजा। ५९३. से भिक्खू वा २ से जाइं पुण पायाइं जाणेजा विरूवरूवाइं महद्धणबंधणाइं, तंजहा- अयबंधणाणि वा जाव चम्मबंधणाणि वा, अण्णयराइं वा तहप्पगाराई महद्धणबंधणाई अफासुयाइं ३ जाव णो पडिगाहेजा। ५९२. साधु या साध्वी यदि यह जाने कि नानाप्रकार के महामूल्यवान पात्र हैं, जैसे कि लोहे के पात्र, रांगे के पात्र, तांबे के पात्र, सीसे के पात्र, चांदी के पात्र, सोने के पात्र, पीतल के पात्र, हारपुट १. 'सीसगपायाणि वा हिरण्णपायाणि वा' अलग-अलग पदों के बदले किसी-किसी प्रति में -'सीसग हिरन्न-सुवन-रीरियाहारपुङ-मणि-काय-कंस-संख-सिंब-दंत-चेल-सेलपायाणि वा चम्मपायाणि वा' ऐसा समस्त पद मिलता है। २. निशीथचूर्णि ११/१ में 'हारपुडपात्र' का अर्थ किया गया है-हारपुडं णाम अयमाद्याः पात्रविशेषा मौक्तिकलताभिरुपशोभिता:- अर्थात् हारपुट लोहादिविशिष्ट पात्र है और जो मोतियों की बेल से सुशोभित हो। ३. यहाँ 'जाव' शब्द से 'अफासुयाई' से लेकर 'णो पडिगाहेज्जा' तक का पाठ सूत्र ३२५ के अनुसार समझें।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy