SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'इन्द्रभूति गौतमः' एक अभिमत जिस प्रकार ब्रह्म की महिमा को ईश्वर प्रकट करता है, पुरुष की महत्ता प्रकृति दर्शाती है, भगवन्त के ऐश्वर्य को सन्त उजागर करते हैं, उसी प्रकार भगवान महावीर की अनन्त श्री को इन्द्रभूति गौतम ने जाज्वल्यमान किया। और भवज्वाला शान्त करने वाले, दुनिया की आग बुझाने वाले उन गौतम गणधर के दिव्यरूप को यहाँ श्री गणेश मुनि जी ने प्रकाशमान किया है । इस दिव्य ग्रन्थ से जैन धर्म की अपूर्व प्रभावना हुई है, पाठक इसमें देखेंगे कि वीतरागता और तज्जन्य समता, शांति और आनन्द जैन धर्म की मूल पृष्ठ भूमि है। विद्वान लेखक को इस 'थीसिस' पर 'डॉक्टरेट' मिलनी चाहिये और उन्हें विशेष पद से विभूषित किया जाना चाहिये । इस अनुपम कृति के उपलक्ष में मैं ज्ञानयोगी श्रीगणेशमुनि जी का तथा सम्पादक बंधु का और उनके भाग्यशाली पाठकों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। -नारायणप्रसाद जैन बम्बई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy