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________________ प्रास्ताविक भारतीय प्राचीन साहित्य के इतिहास की ओर दृष्टिपात करने से लगता है कि सचमुच भारत के प्राचीन विद्वान लेखक बहुत ही निस्पृह वृत्ति के थे। यशः कीर्ति की उन्हें जरा भी एषणा न थी। इसीलिये वे अपने निज के अथवा अपनीकृति के सम्बन्ध में परिचय देने की आवश्यकता नहीं समझते । परिणाम यह हुआ कि हम अपने साहित्य के क्रमिक इतिहास का अध्ययन कर उसके मूल्यांकन से वंचित रह गये। ___ भगवान महावीर और भगवान बुद्ध जैसे लोक-विश्रु त तपस्वी लोक नेताओं की जन्म एवं निर्वाण-तिथि के सम्बन्ध में आज भी हमें कितना ऊहापोह करना पड़ता है ? और महावीर की निर्वाण भूमि के सम्बन्ध में निश्चय से नहीं कहा जा सकता कि यह वही मध्यमपावा है जो महावीर-निर्वाण के पूर्व अपापा कही जाती थी, जहाँ काशी-कौशल के गण राजाओं ने एकत्र होकर महावीर-निर्वाणोत्सव उजागर किया था। ऐसी हालत में यदि गौतम इन्द्रभूति के सम्बन्ध में विशेष जानकारी उपलब्ध न हो तो आश्चर्य की बात नहीं। प्राचीन जैन ग्रन्थों से उनके सम्बन्ध में हम इतना ही जानते हैं कि वे गौतम गोत्रीय, विहार के अन्तर्गत गोब्बर ग्राम निवासी. भगवान महावीर के प्रमुख गणधरों में थे। मगध के वे सुप्रसिद्ध विद्वान् ब्राह्मण थे, तथा अग्निभूति और वायुभूति नामक अपने भाइयों के साथ भगवान् महावीर के समवशरण में उपस्थित हो श्रमणों की निग्रन्थ दीक्षा उन्होंने ग्रहण की थी। इन्द्रभूति अत्यन्त जिज्ञासु थे जिसके परिणाम स्वरूप जैन आगमों की वाचना को द्वादशांग का रूप प्राप्त हुआ। भगवान महावीर के समक्ष उन्होंने अपनी कितनी ही जिज्ञासायें प्रस्तुत की, जिनका समाधान महावीर ने बोधगम्य सरल भाषा में किया । वस्तुतः जैन आगमों का अधिकांश भाग गौतम इन्द्रभूति की जिज्ञासा का ही परिणाम समझना चाहिये । इन्द्रभूति के अनेक संवाद जैन आगमग्रन्थों में उल्लिखित हैं । इनमें उत्तराध्ययन-सूत्र के अन्तर्गत केशी-गौतम नामक संवाद विशेष रूप से ध्यान आकर्षित करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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