SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अस्तेय-व्रत की भूमिका अहिंसा और सत्य के बाद अस्तेय का नम्बर आता है । अस्तेय का अर्थ है, अचौर्य। आप जानना चाहेंगे, अचौर्य क्या है ? अचौर्य का सीधा-सादा अर्थ है, चोरी न करना। बिना आज्ञा के किसी की कोई भी वस्तु न लेना। सत्य और प्रेम : अस्तेय की प्रतिज्ञा के सम्बन्ध में सब से बड़ी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जो साधक साधना के क्षेत्र में उपस्थित हुआ है, उसके मन में अहिंसा और सत्य की सुगन्ध भरी होनी चाहिए। वह अहिंसा और सत्य किस प्रकार सुरक्षित रह सकते हैं और किस प्रकार उनके द्वारा हम अपना और समाज का भी कल्याण कर सकते हैं, यह इस प्रतिज्ञा की मूल भावना है। इसके लिए बहुत बड़े चरित्र-बल की आवश्यकता है। जब तक चरित्र-बल उत्पन्न नहीं होगा और आन्तरिक जीवन में उल्लास और भावना की जागृति नहीं होगी, तब तक कोई भी नियम जीवन में गति नहीं दे सकता। वह अन्तःस्फरणा, जो पैदा होनी चाहिए, नहीं हो सकेगी और उस व्रत या प्रतिज्ञा में जो प्रकाश और चमक आनी चाहिए, नहीं आ सकेगी। अक्सर देखते हैं, नियम तो ले लिया है, व्रत भी अंगीकार कर लिया है और प्रतिज्ञा भी ग्रहण कर ली है, और सब-कुछ हो गया है, किन्तु यह सब-कुछ होने पर भी ऐसा मालूम होता है कि कुछ भी नहीं हुआ है ! क्या बात है कि हम चलते हुए तो दिखाई देते हैं, किन्तु जब अपनी गति को नापना चाहते हैं तो एक इंच भी गति बढ़ती हुई दिखलाई नहीं देती। साधु भी चलता है और गृहस्थ भी चलता है, और निरन्तर पचास-साठ वर्षों तक, यह चलना जारी रहता है, किन्तु जब इतने लम्बे काल की गति को नापते हैं और विचारों की दृष्टि से ठीक तरह समझना चाहते हैं तो ऐसा मालूम नहीं होता है कि हम कुछ चले भी हैं । जीवन में कोई विकास और प्रगति हुई नहीं दीखती है। आखिर इसका मूल कारण क्या है ? हमें इस प्रश्न पर गंभीर भाव से विचार करना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003418
Book TitleAsteya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy