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________________ ZIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIII सत्य-सूत्र निच्चकालअप्पमत्तेणं, मुसावायविवज्जणं। भासियव्वं हियं सच्चं, निच्चाऽऽउत्तेण दुक्करं॥ सदा अप्रमादी और सावधान रहकर, असत्य को त्याग कर, हितकारी सत्य वचन ही बोलना चाहिए। इस तरह सत्य बोलना बड़ा कठिन होता है। अप्पणट्ठा परट्ठा वा, कोहा वा जइ वा भया। हिंसगं न मुसं बूया, नो वि अन्नं वयावए॥ अपने स्वार्थ के लिए अथवा दूसरों के लिए, क्रोध से अथवा भय से किसी भी प्रसंग पर दूसरों को पीड़ा पहुंचाने वाला असत्य वचन न तो स्वयं बोले, न दूसरों से बुलवाये। ३ मुसावाओ य लोगम्मि, सव्वसाहूहिं गरहिओ। अविस्सासो य भूयाणं, तम्हा मोसं विवज्जए॥ मृषावाद (असत्य) संसार में सभी सत्पुरुषों द्वारा निन्दित ठहराया गया है और सभी प्राणियों को अविश्वसनीय है, इसलिए मृषावाद सर्वथा छोड़ देना चाहिए। न लवेज्ज पुट्ठो सावज्जं, न निरटुं न मम्मयं। अप्पणट्ठा परट्ठा वा, उभयस्सन्तरेण वा॥ अपने स्वार्थ के लिए, अथवा दूसरों के लिए, दोनों में से किसी के भी लिए, पूछने पर पापयुक्त, निरर्थक एवं मर्मभेदक वचन नहीं बोलना चाहिए। तहेव सावज्जअणुमोयणी गिरा, ओतारिणी जा या परोवघायणी। से कोह लोह भय हास माणवो, न हासमाणो वि गिरं वएज्जा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003416
Book TitleUpasak Anand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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