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________________ राष्ट्रसन्त कविरत्न उपाध्याय श्री अमरमुनिजी महाराज आशीर्वाद प्रदाता राष्ट्रसन्त उपाध्याय श्री अमरमुनिजी महाराज प्रबुद्ध विचारक, प्रज्ञा - पुरूष, तत्वज्ञ, महान दार्शनिक, साहित्य-शिल्पी एवं प्रखर वक्ता थे । आपका आगम, दर्शन, साहित्य एवं सैद्वान्तिक अध्ययन किसी पन्थ - परम्परा के क्षुद्र दायरे में सीमित नहीं था। समग्र भारतीय दर्शन एवं धर्मग्रन्थों के गम्भीर चिन्तन के साथ आगम तलस्पर्शी अध्ययन था । संस्कृत, प्राकृत, पालि, अपभ्रंश, हिन्दी, गुजराती, बंगला और उर्दु भाषाओं के आप प्रकाण्ड विद्वान थे। जैन आगम, निर्युक्ति, चूर्णि, भाष्य एवं संस्कृत टीकाओं और जैन दर्शनशास्त्र का उन्होने गम्भीर अध्ययन किया था और उसके साथ ही वेद, आरण्यक, उपनिशद, गीता, वैदिक दर्शन, बौद्व दर्शन एवं त्रिपिटक का भी सांगोपांग अध्ययन किया था वे भारतीय वाड:मय के महान अध्येता, व्याख्याता एवं विवेचक थे और जीवन पर्यन्त आपकी पारदर्शी चिन्तन-धारा सतत प्रवहमान रही । विचार चिन्तन एवं निर्द्वन्द्वभाव से उसकी सही अभिव्यक्ति करना आपका सहज स्वभाव था। आपका वज्र उद्घोश रहा- धर्म परम्परागत चले आ रहे बाा आचार के विधि - निषेधपरक क्रिया-काण्डों में नहीं हैं। वह है, विवेक में, प्रज्ञा में, और अन्तर के भाव में । धर्म किसी स्थान, काल, वेश-भूषा एवं क्रिया - काण्डों में नहीं हैं, वह अक्षुण्ण, अखण्ड दिव्य आत्म-ज्योति है, जो जीवन के हर व्यवहार में झलकती रहनी चाहिए। उसे जीवन की धारा से अलग करना धर्म से विमुख करना हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003409
Book TitlePragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2009
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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