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बुद्धि-विलास उतपति सु जिम कारण वहुरि वसु-ग्यांन-धारी मुनि भये । कोनौं सकल तिनको कथन पद कोटियक घटियक-ठये ॥ षष्टमां सत्य प्रवाद मैं अक्षर सथांनक पाठ हैं।
वे-इंद्रियादिक जीव की जो वचन-गुप्ति सु पाठ हैं ॥१२१३॥ दोहा : संसकार तिनको कह्यौ, पद ताके सव होय ।
ऐक कोटि फुनि लाष षट, वरनें हैं मुनि लोय ॥१२१४॥ सप्तम आत्म-प्रवाद मैं, वरन्यौं आत्म-स्वरूप ।
पद है कोटि छवीस तसु, वरनन अधिक अनूप ॥१२१५॥ छंद गी० : अष्टम सु कर्म प्रवाद मैं सब कथन कर्मनि को कहैं।
उपसम उर्दै सु उदीरणां फुनि निर्जरा अरु वंध हैं। पद कोटि यक परि लाष अस्सी जांनिऐ सव सिंह तनैं ।
फुनि पूर्व-प्रत्याष्यांन नवमैं कथन गुर असैं भनें ॥१२१६॥ दोहा : रूप-दऱ्या-परजाय कौ, प्रत्याष्यांन सुभाष ।
वरन्यौ तिनको निश्चलन, पद चौरासी लाष ॥१२१७॥ छौंद गी० : विद्यान-वाद सु जानिऐं, दसमैं सु मद्धि वषांनिऐं।
विद्या बड़ी सत पंच है, सप्त सै छोटी संच है ॥१२१८॥ अष्टांगनि-मत जु ग्यान है, पद कोटि ग्यारह मांन है। अव सुनहु पूरव ग्यारऊ, कल्यांन-वाद सु वरनऊं ॥१२१६॥ चौवीस जो तीर्थेस है, चक्री जु वारह वेस है। वलि वासदेव जु गाईऐ, प्रति वासदेव वताइऐ ॥१२२०॥ नव नव कहे तिनको कथा, सौधर्म इंद्र तनी यथा । तिनु पुन्य की महिमां कही, पद कोटि छब्बीसहि सही ॥१२२१।। वारमा प्रांरणावाद मधि, अष्टांगवैद-विद्या प्रसिधि । गारुडी विद्या और है, फुनि जंत्र-मंत्रन वोर है ॥१२२२॥ पद कोटि यक प्रव जांनिएँ, परि तीस लाष वषांनिएँ। फुनि वाद-क्रिया विसाल है, तेरमौं पूरव भाल है ॥१२२३॥ ता मद्धि वरनन छंद कौं, है अलंकार अमंद को। व्याकर्ण आदि सु जांनिऐं, पद कोटि नव सव मानिऐं ॥१२२४॥
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