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________________ श्री करम चंद मंत्रि-वंश प्रबन्ध । --भीमराज मंत्रीराज आगलि खरइ खांडइ खेलि, संग्रामकरि परलोक पहुतउ जयत सीरी गेलि । रण झूझता किम सूर पाछा पग दिखावर आज, वरपुत्र माता जनकनइ किम आणावर ते लाज ।। विक्रम० ।। १२० यतः - संपदि यस्य न हर्षो विपदि विषादो रणे च धीरत्वम् । तं भुवनत्रयतिलकं जनयति जननी सुतं विरलम् ॥ २ अभिमुखागतमार्गणधोरणीध्वनितपल्लविताम्बरगद्दरे । वितरणे च रणे च समुद्यते भवति कोऽपि दृढो विरलः पुमान् ॥ ३ Jain Education International -जयतसी रणमहि रह्यउ जांणी लेइ जंगल देस, मालदेव निज पुरि जाम पहुतउ फणधरी जिम सेस । साहिसेन सजि नगराज आव्यउ भंजीयउ रिपुवास, रणसूरि हरि अरि सूर तमभर अधिकउ कीयउ प्रकास || विक्रम ० ॥ १२१ निज भूमि वाली जयतहथउ हिव आवीयउ निजठामि, सेरसाहि करि कल्याणनइ टीलउ दिवारइ ताम । मंत्रीस साहिनइ साथि आव्यउ मूकि बीकानेर, कल्याणनृपनइ हिव खुसी साहि भेज मंत्रिनइ फेरि ॥ विक्रम० ।। १२२ आवतां श्रीअजमेरू पहुता सरगि अणसण लेउ, इहलोक नइ परलोकना बुध करइ कारिज बेउ । कल्याणमल हित्र राज पालइ तेजि करिय महल, नगराजना सुत त्रिह हुआ चालइ पूरव चल्ल || विक्रम० ॥ १२३ कलियुग कृतयुग प्रमुखस्युं अवतर्या ए धरि देह, विधि विष्णु गोरीपति किस्युं अथवा हुआ धरि नेह । •मंत्री देवा सगुण राणा सुमति श्रीसंग्राम, मंत्रीयां माहे महत जसु जागइ सुजस संग्राम ॥ विक्रम० ॥ - कल्याणराजा मानीयउ जिम सुरगुरु सुरराजि, देवा तनूरुह सार मेहायल जिसउ द्विजराज । वर अभय माना मंत्रि राणापुत्र अमृत सुजान, संग्रामनइ घरि घरणि त्रिहे कलपलता जिम दानि ।। विक्रम० ।। १२५ इश्वर घरइ जया विजया शिवा सोहइ जेम, सुरताणदे सिरताज समरइ जिन भणी धरि प्रेम । - गुरु भगत भगतादेवि भाग सोभाग भर जगि जास, सुरूप देवि मंत्रिसंग्राममंदिरि तिम महिमानउ निवास ।। विक्रम० ।। १२६ ॥ ढाल ६, राग - सामेरी ॥ 84 संग्राम मंत्री । १३० १३१ मतिसागर मुहतउ जाणी, सेरसाहइ सुगण वखाणी । संग्राम मंत्रीसर थाप्यउ, जगमइ जस जेहनउ व्याप्यउ ।। १२७ आबूगिरि श्रीगिरिनारइ, करि जात्रा जिनिंद जुहारइ । विमलागिरि गुरूअइ भावइ, सेना सजि जात्रनुं आवइ ।। १२८ मुगताचलि कीधउ मुगतउ, कंचणदत दीघउ जुगतउ । कोटीधज सांहां सांखर, इंद्रमाल पिहरि जस राखइ ।। १२९ • आया जिनि जिनि पुरि गामइ, लाहाण कीधी संग्रामइ । सनमुख ठाकुर सवि आइ, सनमान देइ बधाइ ॥ वलता चित्रकूट पधार, राणउजी महत वधारइ । लेइ पूरउ अह्मनउ कोड, अस ग्राम गजानी जोड || सामि धरमी मंत्रि न दूकउ, लेवा न लोभि न चूकउ । बोलायउ नृप कल्याणइ, सेना सजि आयउ त्राणइ ।। विचि मालदेवस्य वात, करि देखि रमइ छल घात । मध्य देसमांहि नवि पइठउ, निज मंडलि आइ बइठउ || करि तोरण वंदर माल, आव्या सनमुख भूपाल । पहुतां कीधउ पइसारउ, वीकमपुर हरण्यउ सार ।। अनुक्रम रिपुना बल पाली, सवि राजधुरा करि झाली । जिनचंद्र क्रिया- उद्धारइ, उच्छव करइ द्रव्य अपार बुधन धन देइ उदार, शिष्यांना प्रकरण पार । पहुचावइ ज्ञाननउ दान, सगलामांहे परधान ॥ सुखहेतु विमलगिरि शिखरइ, विधि-चैत्य करावइ सुपरइ । दुरभिखि दे सत्रुकार, कीधउ सगलइ उपगार ॥ १३२ १३३ For Private & Personal Use Only १२४ १३४ ॥। १३५ १३६ १३७ www.jainelibrary.org
SR No.003400
Book TitleMantri Karmchandra Vanshavali Prabandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1980
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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