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________________ प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात ईस जोस अभंग, दुहू तरफ दवांणा' । सजै मार सांधणी', बाड़ समरा उडांणा । बकै छकै चीफरै, हुवा भमरूत गहकै । चोप तीप नह चकै, थहै रिहूत न थकै । बाराह रूप * दुहू थट बिकट, पग पूंनी बाहै पहै । अंग झड़ कैक पड़ उपड़े, ढांग तेा केह A5 है | बात ईण भांत कितराहेक तो गोळी तीर बरछियांसूं फूटा । कितराहेक कटारियांरा मारिया लथोबथ हुवा तिके ईण भांत उळभिया । सो जुवा किया ही न होय जुवा । सो म्होकमसिंघ कितराहेक सरदार रजपूतांनूं पकड़ लीधा । पकड़िया तिकांनूं रावत प्रतापसिंघरी हजूर प्राण हाजर कोधा' । तिकांनूं घोड़ा सिरपाव' देर छोड दीधा । फुरमायो थाने क्यों प्रोरूं हर होय' तो म्हारी सरकारसूं घोड़ा दिरावां । म्हांरी धरती मांहे दोड़ज्यौ । अर गढरो जोम होवे तो फेर सांमांन करो | म्हांरी फोज आवे छे । जिणसूं हाथ जोड़ज्यौ । प्रबरकै " तो छोडिया छै । जंमीदाराकी साषसूं" हर अबरकै चुकस्यौ तो मार हीज नांषस्यूं " । श्रबै वा जायगा म्हांरी दीवी" रहसी थांहरै कनं " 11 12 14 १. दईवारण - दीवाण, रावत प्रतापसिंह । २. सांधणी - संकरी, थोड़े-थोड़े स्थान पर । ३. असमरां - तलवारें । ४. बाराह रूप - सुधर के रूपमें, सुश्रर वीरताका प्रतीक माना जाता है । ५. झड़े - झड़ते हैं, कटते हैं । ६. फूटा - घायल हुए । ७. प्रतापसिंघरी कीधा - प्रतापसिंहके दरबार में ला कर उपस्थित किया । ८. सिरपाव - मस्तकसे पैर तक के वस्त्राभूषण । ६. श्री हर होय - फिर इच्छा हो ( लड़नेकी) । १०. प्रबरकै - श्रवकी बार । .. ११. सासू - साक्षिसे, सिफारिशसे । १२. मारनांषस्यूं- मार ही डालूंगा । १३. म्हारी दीवी - मेरी दी हुई । १४. थांहरे करें - तुम्हारे पाससे । Jain Education International For Private & Personal Use Only [ ६३ www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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