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________________ प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात [ २७ मांहि पैठो थो। चाकर कनै थो जिकण कनां जांमगी कळरै लागी थी। अर भीलरी काळरी घड़ी प्राय बागी थी। इतरामैं वो भील अचाणचको उण हीज गैलै आयो। चाकर देषियो पर मन भायो। चाकर कन बंदूक थी। अर जामगी कलरे लागी थी। सो रोसरी धकधार" पर कही। रावतजी सलामत ओ भीलड़ो हरामषोर । प्रथीरो चोर । काळरो षादो। मोतरी जेवड़ीरो बांधो । प्रो पावै । ईणनूं देषीजै। अरु हुकम होय तो गोळीरी दीजै । तद वां देषनै कहियो। गोळीरी तो न देणी। इण लौंडरी' भी मजबूती देषणी । सांचवटसू अंगो अंग बाकारनै मारणो। अरु प्रथी प्रतीष चोषको बचन उबारणो। १. कनै – निकट । २. जांमगी - मध्यकालीन तोप या बन्दूकको चलानेके लिये उसमें भरी हुई बारूदको बारूद लगे हुए धागेसे जलाया जाता था। ऐसे बारूद लगे हुए धागेको जामगी कहा जाता है। ३. कळरै - कलके, बन्दूकके चलने वाले भागके । ४. बागी - बजी। ५. अचाणचको - अचानक । अचानक शब्दका सम्बन्ध "अज्ञान" से जोड़ा जाता है, जैसे अचानक <अजाणक<अज्ञानक<अज्ञान । एक मतसे अचानकका सम्बन्ध 'प्रचाणक्य' से भी माना जाता है अर्थात् ऐसा कार्य जिसकी सूचना चाणक्य जैसे तीन बुद्धिके व्यक्तिको भी न हो । वास्तवमें 'अचानक' उर्दू शब्द है । ६. गैल-मार्गमें । ७. रोसरी धकधार-क्रोधके प्रावेशमें । ८. मोतरी 'बांधो-मौतको रस्सीसे बंधा हुआ । मुंज या सण की बनी रस्सी को जेवड़ी कहते हैं। ६. लौंडरी - लौंडेको, सामान्य लड़केके लिये तिरस्कारयुक्त अभिव्यक्ति । १०. सांचवटसू- सचाईसे। ११. अंगो अंग - अंगसे अंग भिड़ा कर, शरीर-युद्ध में । १२. बाकार - ललकार कर, सचेत कर । १३. प्रथी - पृथ्वी। १४. प्रतीष चोषको-प्रत्यक्ष भलाईका । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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