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________________ वीरमदे सोनीगरारी वात [ ७१ प्र वात रांणगदेजी सांभली' । तरे पूछियो । हठ घणो कीधो । तरै भेद पछारो वतायौ । संझ्या सम रावजी महिलां पधारीया तर अपछरा मुजरो करे नै मांगी। तो साहिबजी मोने लोकां दीठी * । राज पीण हकीगत कीही सो म्हे तो जावसुं । रंग भोग विलास करने अलोप हुई । जाती की कहीय मांहरा बेटारी छायामै छांनी थकी हसु । ईतरो कहि जाती रही । 6 अब वीरमदेजी पंजू पायक कनें सिनूंरा [ सिरूंरा ] ' घाव डाव | पंजू त बंधांणो । वरसां १६ माहे वीरमदेजी हूवा । तिसै जेसलमेरो धणी भाटी रोव लाषणसी एक दिन गोषै बैठो थो । तिस सवणी बोलीयो । रावजी सलामत सवा पोहर दिन चढीयां सोनिकरा कांन्हडदेने विस होसी । इसो सांभलेनै राव लाणसी कागद लिषनै वीरा राइकाने 10 कह्यौ । वोलाई सांढ ताती छे । तिण चढने जालोर जा । सवा पोहर दिन चढीयां मोहर जाए" । तोने साबास देसां । परवांनो कांन्हडदेजीरे हाथे दीयो । इसो कहिनें चांपरसुं" चढीयो । जेसलमेरसुं जालोर कोस 1 2 १. सांभली - सुनी। २. संझ्या समै - संध्या के समय, सायङ्काल । ३. सीष मांगी - छुट्टी मांगी, जानेकी स्वीकृति चाही । ४. मोने दीठी- मुझे लोगोंने देख लिया । ५. लोप हुई - लुप्त हुई, अंतर्ध्यान हुई । ६. छांनी थकी रहसु - गुप्त रूपमें रहूंगी, छिपी हुई रहूंगी। ७. सिम्तूंरा [ सिरूरा ] - प्रारम्भिक मल्ल विद्या (?) 1 ८. सवरणी बोलीयो - भविष्यवक्ता शकुनी बोला (?) ख. ग. प्रतियों में "सांवण बोल्यो । ति जिनावर क्यो (थ्यो) कौ" पाठ है । सवणीसे तात्पर्य शकुन एवं भविष्य बताने वाले पक्षी से है । ६. विस होसी - विष दिया जावेगा, दुःख होगा । १०. राइकाने - ऊंट सवारको । ११. बोलाई ताती छै - समीपकी (?) ऊंटनी तेज चलने वाली है । १२. मोहर जाए - पहले जाना । १३. चांपरसु - शीघ्रता से, चापल्य ( सं .) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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