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________________ २५६ निशीथ-छेदसूत्रम् -३-१६/१०९७ [भा.५९००] हरिए बीए चले जुत्ते, वत्थे साणे जलहिते। पुढवीऽसंपातिमा सामा, महावाते महिताऽमिते॥ चू-ओहनिनुत्तिमादीसुअनेगसो गतत्था । एस उवही अव्वोकडो भणिओ । विभागतो पुण उवही दुविहो - ओहिओ उवग्गहितो य । जिणाणं परिहारविसुद्धियाणं अहालंदियाणं पडिमापडिवण्णगाणं, एतेसिं ओहितो चेव उवही । जिनकप्पिया दुविहा - पाणिपडिग्गही, पडिग्गहधारीय।पाणिपडिग्गही दुविहा-पाउरणवज्जिया, सहियाय। पाउरणवज्जियाणंदुविहो - रयहरणं मुहपोत्तिया य । पाउरणसहियाणं तिविहं, चउव्विहं, पंचविहं । पडिग्गहधारी वि पाउरणवजिओ पाउरणसहितो वा । पाउरणवज्जियस्स नवविहो । पाउरणसहियस्स दसविहो एककारसविहो बारसविहो य । परिहारविसुद्धिगादी नियमा पडिग्गहधारी पाउरणं । धितिसंघयणअभिग्गहविसेसओ भयणिज्जं । अहालंदियाण विसेसो गच्छे पडिबद्धा अप्पडिबद्धा वा होज्ज । इमं थेरकप्पियाणं[भा.५९०१] चोद्दसगं पणुवीसा, ओहोवधुवग्गहो यऽनेगविहो। संथारपट्टमादी, उभयो पक्खे वि नायव्वो॥ चू-थेरकप्पियाणं ओहोवही चोद्दसविहो । संजतीण ओहोवही पनवीसविहो । उभयपक्खे त्ति साधुसाधुणीणं उवग्गहिओ उवही संथारगपट्टादि अनेगविहो भवति॥ मू. (१०९८) जे भिक्खू अनंतरहियाए पुढवीए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सओस्से सउदए सउत्तिंग-पनग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगंसि, दुब्बद्धे, दुनिखित्ते, अनिकपे, चलाचले उच्चारपासवणं परिट्टवेइ, परिहवेंतं वा सातिजति ।। मू. (१०९९) जे भिक्खू ससणिद्धाए पुढवीए जीवपइटिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए, सओस्से सउदए सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टियमक्कडासंताणगंसि दुब्बद्धे, दुनिखित्ते, अनिकंपे, चलाचले उच्चारपासवणं परिहवेइ, परिहवेंतं वा साइजइ। मू. (११००) जे भिक्खू ससरक्खाए पुढवीए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सओस्से सउदए सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगंसि दुब्बद्धे,दुनिखित्ते, अनिकंपे, चलाचलें उच्चारपासवणं परिट्ठवेइ, परिट्ठवेंतं वा सातिजति ॥ मू. (११०१) जे भिक्खू मट्टियाकडाए पुढवीए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सओस्से सउदए सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगंसि दुब्बद्धे, दुन्निखित्ते, अनिकंपे, चलाचले उच्चारपासवणं परिट्ठवेइ, परिट्ठवेंतं वा सातिजति ॥ मू. (११०२) जे भिक्खू चित्तमंताए पुढवीए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सओस्से सउदए सउत्तिंग-पनग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगंसि दुब्बद्धे, दुन्निखित्ते, अनिकंपे, चलाचले उच्चारपासवणं परिट्ठवेइ, परिहवेंतं वा सातिञ्जति ॥ मू. (११०३) जेभिक्खू सिलाएजीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिएसओस्से सउदए सउत्तिंग-पनग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगंसिदुब्बद्धे, दुन्निखित्ते, अनिकंपे, चलाचलेउच्चारपासवणं परिट्ठवेइ, परिठ्ठवेंतं वा सातिजति ॥ मू. (११०४) जे भिक्खू लेलूए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सओस्से सउदए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003321
Book TitleAgam Suttani Satikam Part 17 Nishitha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages476
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nishith
File Size23 MB
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