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________________ अष्टमाध्यायस्य तृतीयः पादः ६०३ सिद्धि-भो हसति । यहां 'भोभगोअघोअपूर्वस्य योऽशि' (८।३।१७) से 'ह' के रेफ को यकारादेश होता है और इस सूत्र से इसका हल वर्ण परे होने पर सब आचार्यों के मत में लोप हो जाता है। ऐसे ही-भो याति आदि। अनुस्वारादेशः (११) मोऽनुस्वारः ।२३। प०वि०-म: ६।१ अनुस्वार: १।१ । अनु०-पदस्य, संहितायाम्, हलीति चानुवर्तते । अन्वय:-संहितायां पदस्य मो हलि अनुस्वारः । अर्थ:-संहितायां विषये पदान्तस्य मकारस्य हलि परतोऽनुस्वारादेशो भवति। उदा०-कुण्डं हरति । वनं हरति । कुण्डं याति। वनं याति । आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (पदस्य) पदान्त में विद्यमान (म:) मकार को (हलि) हल् वर्ण परे होने पर (अनुस्वारः) अनुस्वार आदेश होता है। उदा०-कुण्डं हरति । वह कुण्ड को हरण करता है। वनं हरति । वह वन (लकड़ी आदि) हरण करता है। कुण्डं याति । वह कुण्ड को प्राप्त करता है। वनं याति । वह वन को प्राप्त करता है। सिद्धि-कुण्डं हरति । यहां इस सूत्र से 'कुण्डम्' के मकार को हल्वर्ण (ह) परे होने पर अनुस्वार आदेश होता है। ऐसे ही-वनं हरति आदि। अनुस्वारादेशः (१२) नश्चापदान्तस्य झलिार। प०वि०-न: ६१ च अव्ययपदम्, अपदान्तस्य ६।१ झलि ७।१ । अनु०-संहितायाम्, म:, अनुस्वार इति चानुवर्तते। अन्वयः-संहितायाम् अपदान्तस्य नो मश्च झलि अनुस्वारः । अर्थ:-संहितायां विषयेऽपदान्तस्य नकारस्य मकारस्य च झलि परतोऽनुस्वारादेशो भवति। उदा०-(नकारः) पयांसि । यशांसि । सपीषि। धनूंषि। (मकारः) आक्रस्यते। आचिकंसते। अधिजिगांसते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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