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________________ १६२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-युवाम् । यहां युष्मद्' शब्द से स्वौजसः' (४।१।२) से से औ' प्रत्यय है। डेप्रथमयोरम् (७।१।२८) से औ' के स्थान में 'अम्' आदेश होता है। इस सूत्र से इस द्विवचन विषयक अम् (औ) विभक्ति परे होने पर युष्मद्' के म-पर्यन्त के स्थान में 'युव' आदेश होता है। प्रथमयाश्च द्विवचने भाषायाम् (७।२।८८) से 'युस्मद्' के अन्त्य अल् (द्) को अकार आदेश होता है। ऐसे ही-युवाभ्याम्, युवयोः । 'अस्मद्' शब्द से-आवाम्, आवाभ्याम्, आवयोः । यूय-वयौ (१५) यूयवयौ जसि।६३। प०वि०-यूय-वयौ १।२ जसि ७।१।। स०-यूयश्च वयश्च तौ-यूयवयौ (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। अनु०-अङ्गस्य, विभक्तौ, युष्मदस्मदो:, मपर्यन्तस्य इति चानुवर्तते। अन्वय:-युष्मदस्मदोरङ्गयोर्मपर्यन्तस्य जसि विभक्तौ यूयवयौ। अर्थ:-युष्मदस्मदोरङ्गयोर्मपर्यन्तस्य स्थाने जसि विभक्तौ परतो यथासंख्यं यूयवयावादेशौ भवत:। उदा०-(युष्मद्) यूयम्। (अस्मद्) वयम्। आर्यभाषा: अर्थ-(युष्मदस्मदो:) युष्मद्, अस्मद् इन (अङ्गयोः) अगों के (मपर्यन्तस्य) मकारपर्यन्त के स्थान में (जसि) जस् (विभक्तौ) विभक्ति परे होने पर यथासंख्य (यूयवयौ) यूय, वय आदेश होते हैं। उदा०-(युष्मद्) यूयम् । तुम सब। (अस्मद्) वयम् । हम सब । सिद्धि-यूयम् । यहां युष्मद्' शब्द से स्वौजसः' (४।१।२) से जस्' प्रत्यय है। 'डेप्रथमयोरम्' (७।१।२८) से 'जस्' के स्थान में अम् आदेश होता है। इस सूत्र से अम् (जस्) विभक्ति परे होने पर युष्मद्' के स्थान में 'यूय' आदेश होता है। शेषे लोप:' (७।२।९०) से युष्मद्' अन्त्य दकार का लोप और 'अमि पूर्वः' (६।१।१०५) से पूर्वसवर्ण एकादेश होता है। ऐसे ही 'अस्मद्' शब्द से-वयम्। त्व-अहौ (१६) त्वाही सौ।६४। प०वि०-त्व-अहौ १।२ सौ ७१। स०-त्वश्च अहश्च तौ-त्वाही (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। अनु०-अङ्गस्य, विभक्तौ, युष्मदस्मदो:, मपर्यन्तस्य इति चानुवर्तते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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