________________
षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः
२४६ यह इस सूत्र से सविध शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। ऐसे हीकाश्मीरेसनीडम् आदि।
विशेष: (१) मद्र-मद्र जनपद प्राचीन वाहीक का उत्तरी भाग था इसकी राजधानी शाकल (वर्तमान स्यालकोट) थी जो आपगा (वर्तमान अयक) नदी पर स्थित है। यह छोटी नदी जम्मू की पहाड़ियों से निकलकर स्यालकोट के पास से होती हुई वर्षा ऋतु में चनाब से मिलती है (पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ० ६७)।
(२) गान्धार-पाणिनिमुनि ने इस जनपद का अधिक पुराना नाम गान्धारि एक सूत्र में (४।१।६९) में दिया है। गन्धार महाजनपद कुनड़ या काश्कर नदी से तक्षशिला तक फैला हुआ था। पश्चिमी गन्धार की राजधानी पुष्कलावती (यूनानी पिउकलाउती) थी, जहां स्वात और काबुल नदी के संगम पर वर्तमान चारसदा है (पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ० ६७)।
(३) काश्मीर जनपद लोकप्रसिद्ध है। प्रकृतिस्वर:
(२४) विस्पष्टादीनि गुणवचनेषु।२४। प०वि०-विस्पष्टादीनि १ ।३ गुणवचनेषु ७।३ ।
स०-विस्पष्ट आदिर्येषां तानि-विस्पष्टदीनि (बहुव्रीहि:)। गुणान् उक्तवन्त इति गुणवचना:, तेषु-गुणवचनेषु (उपपदतत्पुरुषः) ।
अनु०-प्रकृत्या, पूर्वपदम् इति चानुवर्तते। . अन्वय:-विस्पष्टादीनि पूर्वपदानि गुणवचनेषु प्रकृत्या ।
अर्थ:-विस्पष्टादीनि पूर्वपदानि गुणवचनेषु उत्तरपदेषु प्रकृतिस्वराणि भवन्ति।
__ उदा०-विस्पष्टं कटुकमिति विस्पष्टकटुकम्। विचित्रकटुकम् । व्यक्तकटुकम्। विस्पष्टं लवणमिति विस्पष्टलवणम्। विचित्रलवणम् । व्यक्तलवणम्।
विस्पष्टं कटुकमिति विगृह्य विस्पष्टकटुकमित्यत्र 'सुप् सुपा' इत्यनेन केवलसमासो वेदितव्यः । विस्पष्टादय: शब्दा: प्रवृत्तिनिमित्तस्य विशेषणं वर्तन्ते । कटुकादिभिश्च शब्दैस्तत्तद् गुणवद् द्रव्यमभिधीयते इत्यतो नास्ति सामान्याधिकरण्यम्, अतो न कर्मधारयसमास: ।
विस्पष्ट । विचित्र । व्यक्त । सम्पन्न । कटु । पण्डित । कुशल । चपल । निपुण इति विस्पष्टादयः ।।