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________________ चतुर्थाध्यायस्य चतुर्थः पादः ४६५ अर्थ:-तेन इति तृतीयासमर्थेभ्य: पर्पादिभ्यः प्रातिपदिकेभ्यश्चरतीत्यस्मिन्नर्थे ष्ठन् प्रत्ययो भवति। उदा०-पर्पण चरति-पर्पिक: । स्त्री चेत्-पर्पिकी। अश्वेन चरतिअश्विकः । स्त्री चेत्-अश्विकी। पर्प। अश्व । अश्वत्थ । रथ । जाल। न्यास । व्याल । पाद। पच्च। पथिक । इति पर्पादयः ।। आर्यभाषा: अर्थ-तिन) तृतीया-समर्थ (पादिभ्यः) पर्प आदि प्रातिपदिकों से (चरति) चरति अर्थ में (ष्ठन्) ष्ठन् प्रत्यय होता है। उदा०-पर्प (पंगुपीठ/पंगु के चलने के लिये एक पहिये की गाड़ी) से जो चलता है वह-पर्पिक । यदि स्त्री है तो-पर्पिकी। अश्व (घोड़ा) से जो चलता है वह-अश्विक । यदि स्त्री है तो-अश्विकी। सिद्धि-पर्पिकः । पर्प+टा+ष्ठन् । पप्+इक। पर्पिक+सु। पर्पिकः । यहां तृतीया-समर्थ 'पर्प' शब्द से चरति (चलता है) अर्थ में इस सूत्र से प्ठन्' प्रत्यय है। ठस्येकः' (७।३ १५०) से ह' के स्थान में 'इक्’ आदेश और 'यस्येति च (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है। प्रत्यय के षित होने से स्त्रीत्व-विवक्षा में 'षिद्गौरादिभ्यश्च (४।१।४१) 'डीए' प्रत्यय होता है-पर्पिकी। प्रत्यय में नकार जित्यादिनित्यम्' (६।१।९४) से आधुदात्त स्वर के लिये है-पर्पिकः । ठ+ष्टन् (४) श्वगणाट्ठञ् च।११। प०वि०-श्वगणात् ५।१ ठञ् १।१ च अव्ययपदम् । अनु०-तेन, चरति इति चानुवर्तते। अन्वय:-तेन श्वगणाच्चरति ठञ् ष्ठन् च। अर्थ:-तेन इति तृतीयासमर्थात् श्वगणशब्दात् प्रातिपदिकाच्चरतीत्यस्मिन्नर्थे ठञ् ष्ठन् च प्रत्ययो भवति । उदा०-(ठञ् ) श्वगणेन चरति-श्वागणिक: । स्त्री चेत्-श्वागणिकी। (ष्ठन्) श्वगणेन चरति-श्वगणिक: । स्त्री चेत्-श्वगणिकी। आर्यभाषा: अर्थ-तिन) तृतीया-समर्थ (श्वगणात्) श्वगण प्रातिपदिक से (चरति) चरति अर्थ में (ठञ्) ठञ् (च) और (ष्ठन्) ष्ठन् प्रत्यय होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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