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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् ऋषि-गोत्रों के अतिरिक्त जिन परिवारों के नाम (बौंक) समाज में प्रसिद्ध होगये थे उन्हें पाणिनि मुनि ने गोत्रावयव कहा है (४।१।७९)। काशिका में गोत्रावयव का अर्थ कुलाख्या किया है जैसे-पुणिक, भुणिक, मुखर आदि। गर्ग-कुल में कौनसा व्यक्ति गार्य और कौनसा गाायण है, इसका समाज में विशेष महत्त्व था। प्रत्येक गृहपति अपने घर का समाज में प्रतिनिधि माना जाता था। वह अपने परिवार की ओर से जाति-बिरादरी की पंचायत में प्रतिनिधि बनकर बैठता था। परिवार के सबसे वृद्ध एवं ज्येष्ठ व्यक्ति के सिर पर पगड़ी बांधी जाती थी। उसे परिवार का मूर्धाभिषिक्त पुरुष कहते थे। यदि गर्ग के चार पुत्र हैं तो उसका ज्येष्ठ पुत्र ही गोत्र' पदवी प्राप्त करता था। ज्येष्ठ भ्राता यदि गार्य पदवी धारण कर लेता तो उसके जीवनकाल में उसके सब छोटे भाई ‘गार्यायण' कहलाते थे भ्रातरि च ज्यायसि (४।१।६४)। इस प्रकार ज्येष्ठ भ्राता गोत्र' कहलाता था और उसकी अपेक्षा उसके छोटे भाई अथवा उसके खुद के पुत्र-पौत्र आदि 'युवा' कहलाते थे। गार्य के रहते हुये वे सब 'गाायण' ही कहे जाते थे। गार्य नामक ज्येष्ठ भाई का यदि कोई बड़ा-बूढ़ा चाचा आदि परिवार में जीवित हो तो उसके जीवनकाल में वह गार्ग्य' भी विकल्प से 'गार्यायण' कहलाता था। यह अपने संयुक्त परिवार के सपिण्ड बड़े-बूढ़े पुरुष के प्रति सम्मानपूर्ण व्यवहार था वाऽन्यस्मिन् सपिण्डे स्थविरतरे जीवति (४।१।१६५)। यदि कोई 'गार्य' इतना वृद्ध हो जाये कि वह परिवार के काम-काज से छुट्टी ले लेवे अथवा अपनी समझ से ही अपने ज्येष्ठ पुत्र को अपने स्थान में प्रतिष्ठित कर देवे तो उस वृद्ध 'गार्ग्य' की युवा 'गाायण' जैसी स्थिति मानी जाती थी वृद्धस्य च पूजायाम् (४।१।१६६)। 'तत्र भवान् गार्यायण:' आप महानुभाव तो अब गाायण हैं। इसका अभिप्राय यह है कि उनके शिर पर परिवार के कार्य का कोई भार नहीं है अपितु परिवार के कार्यभार इसके ज्येष्ठ पुत्र पर है अत: इसकी अवस्था युवा गाायण के समान है। यदि कोई युवा गाायण अपने गार्ग्य पिता के जीवन-काल में ही परिवार पर अधिकार कर बैठता था और गार्ग्य जैसा दावा करने लगता था उसे समाज में अच्छा नहीं समझा जाता था। उसे 'गार्यो जाल्म:' कहा जाता था अर्थात् निगोड़ा कैसा उतावला है कि यह 'गार्ग्य' बन बैठा यूनश्च कुत्सायाम् (४।१।१६७)। (२) जनपद सूत्र काल में जनपद' यह भारतीय भूगोल का महत्त्वपूर्ण शब्द था। उस समय सारा देश जनपदों में बंटा हुआ था। काशिकाकार ने गांवों के समुदाय को जनपद कहा हैग्रामसमुदायो जनपद: (४।२१)। यहां ग्राम शब्द से नगर का भी ग्रहण किया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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