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________________ चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः ૩ર૬ आर्यभाषा8 अर्थ-(तत्र) सप्तमी-विभक्ति-समर्थ (पूर्वाह्णअवस्करात्) पूर्वाण, अपराह्ण, आर्द्रा, मूल, प्रदोष, अवस्कर प्रातिपदिकों से (जात:) जात अर्थ में (न्) वुन् प्रत्यय होता है। उदा०-(पूर्वाण) पूर्वाह्ण जात: पूर्वाह्णकः । दिन के पूर्वभाग में उत्पन्न हुआ-पूर्वाह्णक। (अपराह्ण) अपराणे जातोऽपराह्णकः । दिन के पश्चिम भाग में उत्पन्न हुआ-अपराह्णक। (आर्द्रा) आर्द्रायां जात आर्द्रकः । आर्द्रा नक्षत्र में उत्पन्न हुआ-आर्द्रक। (मूल) मूले जातो मूलकः । मूल नक्षत्र में उत्पन्न हुआ-मूलक। (प्रदोष) प्रदोषे जात: प्रदोषक: । रात्रि के प्रथम पहर में उत्पन्न हुआ-प्रदोषक। (अवस्कर) अवस्करे जातोऽवस्करकः । अवस्कर-विष्ठा (गोबर) में उत्पन्न हुआ-अवस्करक। सिद्धि-पूर्वाणक: । पूर्वाण डि कुन्। पूर्वा+अक । पूर्वाणक+सु । पूर्वाह्णकः । ___ यहां सप्तमी-समर्थ पूर्वाह्ण' शब्द से जात अर्थ में इस सूत्र से वुन्' प्रत्यय है। युवोरनाको' (७।१।१) से 'वु' के स्थान में अक' आदेश होता है। ऐसे ही-अपराह्णकः आदि। वुन् (५) पथः पन्थ च।२६। प०वि०-पथ: ५ ११ (६ १) पन्थ १।१ (सु-लुक्) च अव्ययपदम्। अनु०-तत्र, जातः, वुन् इति चानुवर्तते। अन्वय:-तत्र पथो जातो वुन् पन्थश्च । अर्थ:-तत्र इति सप्तमीविभक्तिसमर्थात् पथिन्-शब्दात् प्रातिपदिकाज्जात इत्यस्मिन्नर्थे वुन् प्रत्ययो भवति, पथ: स्थाने च पन्थ आदेशो भवति। उदा०-पथि जात: पन्थकः । आर्यभाषा: अर्थ-(तत्र) सप्तमी-विभक्ति-समर्थ (पथ:) पथिन् प्रातिपदिक से (जात:) जात अर्थ में (बुन्) वुन् प्रत्यय होता है (च) और 'पथिन्' शब्द के स्थान में (पन्थः) 'पन्थ' आदेश होता है। उदा०-पथि जात: पन्थकः । पन्था मार्ग में उत्पन्न हुआ-पन्थक । सिद्धि-पन्थकः । पथिन्+डि+वुन् । पन्थ्+अक। पन्थक+सु। पन्थकः । यहां सप्तमी-समर्थ 'पथिन्' शब्द से जात अर्थ में इस सूत्र से वुन्' प्रत्यय है और पथिन्’ के स्थान में 'पन्थ' आदेश होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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