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________________ ३१२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अ: (६३) असाम्प्रतिके।६। प०वि०-अ ११ (सु-लुक्) साम्प्रतिके ७ १ । अनु०-शेषे, मध्याद् इति चानुवर्तते । अन्वय:-यथासम्भव०मध्यात् साम्प्रतिके शेषे अ: । अर्थ:-यथासम्भवविभक्तिसमर्थाद् मध्यात् प्रातिपदिकात् साम्प्रतिके जातादौ शेषेऽर्थे अ: प्रत्ययो भवति। साम्प्रतिकम् न्याय्यम्, युक्तम्, उचितम्, सममित्युच्यते। उदा०-मध्ये जातं मध्यम्। नातिदीर्घ नातिह्रस्वं मध्यं काष्ठम् । नात्युत्कृष्टो नात्यवकृष्टो मध्यो वैयाकरण: । मध्या नारी। आर्यभाषा: अर्थ-यथासम्भव-विभक्ति-समर्थ (मध्यात्) मध्य प्रातिपदिक से (साम्प्रतिके) उचित (शेषे) जातादि शेष अर्थों में (अ:) अप्रत्यय होता है। साम्प्रतिक शब्द का अर्थ न्याय्य, युक्त, उचित एवं सम है। __ उदा०-मध्ये जातं मध्यम् । नातिदीर्घ नातिहस्वं मध्यं काष्ठम् । न बहुत बड़ा और न बहुत छोटा यह मध्य काष्ठ (लकड़ी) है। नात्युत्कृष्टो नात्यवकृष्टो मध्यो वैयाकरण: । न बहुत बढ़िया और न बहुत घटिया यह मध्य वैयाकरण है। मध्या नारी। न बहुत सुरूप और न बहुत कुरूप यह मध्या नारी है। सिद्धि-मध्यम् । मध्य+डि+। मध्य+अ। मध्य+सु । मध्यम् । यहां सप्तमी-समर्थ 'मध्य' शब्द से साम्प्रतिक जातादि शेष अर्थों में इस सूत्र से अ' प्रत्यय है। यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है। यञ् (६४) द्वीपादनुसमुद्रं यञ्।१०। प०वि०-द्वीपात् ५ ।१ अनुसमुद्रम् अव्ययपदम्, यञ् १।१। स०-समुद्रं समया इति अनुसमुद्रम्, अनुर्यत्सया (२।१।१५) इत्यव्ययीभावसमासः । अनु०-शेषे इत्यनुवर्तते। अन्वय:-यथासम्भव०अनुसमुद्रं द्वीपात् शेषे यञ् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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