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________________ २८६ __ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् कलिङ्गेषु जात: कालिङ्गकः । कलिङ्ग जनपद में उत्पन्न हुआ-कालिङ्गक । हरयाणेषु जातो हारयाणकः । हरयाण जनपद में उत्पन्न हुआ-हारयाणक। लोक में बहुवचन में प्रयुक्त है- 'हरयाणा:' । (वृद्ध जनपद) दार्वेषु जातो दार्वकः । दार्व जनपद में उत्पन्न हुआ-दार्वक। जाम्बवेषु जातो जाम्बवकः । जाम्बव में उत्पन्न हुआ-जाम्बवक । (अवृद्धजनपदावधिवाची) अजमीढेषु जात आजमीढक: । अजमीढ जनपद-सीमा में उत्पन्न हुआ-आजमीढक । अजक्रन्देषु जात आजक्रन्दकः। अजक्रन्द जनपद-सीमा में उत्पन्न हुआ-आजक्रन्दक। (वद्धजनपदावधिवाची) कालज्जरेषु जात: कालजरकः । कालजर जनपद-सीमा में उत्पन्न हुआ-कालजरक। वैकुलिशेषु जातो वैकुलिशकः । वैकुलिश जनपद-सीमा में उत्पन्न हुआ-वैकुलिशक। सिद्धि-आङ्गकः । अङ्ग+सुप्+वुञ् । आङ्ग अक। आङ्गक+सु। आङ्गकः । यहां सप्तमी-समर्थ, बहुवचन-विषयक, अवृद्धसंज्ञक, जनपदवाची 'अङ्ग' शब्द से शेष अर्थों में इस सूत्र से वुञ् प्रत्यय है। युवोरनाकौ' (७/११) से वु' के स्थान में 'अक' आदेश और तद्धितेष्वचामादेः' (७।२।११७) से अंग को आदिवद्धि होती है। ऐसे ही-वाङ्गक: आदि। विशेष-(१) अङ्ग-गंगा के दाहिने तट पर अवस्थित प्राचीन एक प्रसिद्ध राज्य । इस राज्य की राजधानी का नाम चम्पा नगरी था। चम्पा का दूसरा नाम अनंगपुरी भी था। यह चम्पा नगरी आधुनिक भागलपुर नगर के समीप बिहार प्रान्त में थी (शब्दार्थकौस्तुभ पृ० १३८१)। (२) वङ्ग- इसे समतट भी कहते हैं। पूर्व बंगाल का नाम । किसी समय इसमें टिपरा और गारों भी शामिल थे। (३) कलिङ्ग-उड़ीसा के दक्षिण की ओर का प्रदेश । यह प्रदेश गोदावरी नदी के उद्गम स्थान तक फैला हुआ था। इस राज्य की प्राचीन राजधानी कलिङ्ग नगर समुद्रतट से कुछ फासले पर थी और सम्भवत: उस स्थान पर थी जहां आधुनिक राजमहेन्द्री नामक नगर है (शब्दार्थकौस्तुभ पृ० १३८२)। (४) अजमीढ। अजक्रन्द-साल्व जनपद (जयपुर-बीकानेर) के अवयव राज्य (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० ७४)। वुञ् (३५) कच्छाग्निवक्त्रगर्तोत्तरपदात् ।१२५ । प०वि०-कच्छ-अग्नि-वक्त्र-गलॊत्तरपदात् ५।१ । स०-कच्छश्च अग्निश्च वक्त्रं च गर्तश्च ते-कच्छाग्निवक्त्रगर्ताः। कच्छग्निवक्त्रगर्ता उत्तरपदानि यस्य तत्-कच्छाग्निवक्त्रगत्तोत्तरपदम्, तस्मात्-कच्छाग्निवक्त्रगर्तोत्तरपदात् (इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भितबहुव्रीहिः)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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