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________________ १६० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनु०-सा, अस्य, देवता, छ इति चानुवर्तते। अन्वय:-सा महेन्द्राद् अस्य घाणौ छश्च देवता । अर्थ:-सा इति प्रथमासमर्थाद् महेन्द्रात् प्रातिपदिकाद् अस्य इति षष्ठ्यर्थे घाणौ छश्च प्रत्यया भवन्ति, यत् प्रथमासमर्थं देवता चेत् सा भवति। उदा०-(घ:) महेन्द्रो देवताऽस्य-महेन्द्रियं हवि:। (अण्) महेन्द्रो देवताऽस्य-माहेन्द्रं हविः। (छ:) महेन्द्रो देवताऽस्य-महेन्द्रीयं हविः । आर्यभाषा: अर्थ-(सा) प्रथमासमर्थ (महेन्द्रात्) महेन्द्र प्रातिपदिक से (अस्य) षष्ठीविभक्ति के अर्थ में (घाणौ) घ, अण् (च) और (छ:) छ प्रत्यय होते हैं दिवता) जो प्रथमासमर्थ है यदि वह देवता हो। उदा०-(घ) महेन्द्रो देवताऽस्य-महेन्द्रियं हविः । महेन्द्र देवता है इसका यह-महेन्द्रिय हवि। (अण) महेन्द्रो देवताऽस्य-माहेन्द्रं हविः । महेन्द्र देवता है इसका यह-माहेन्द्र हवि। (छ) महेन्द्रो देवताऽस्य-महेन्द्रीयं हविः । महेन्द्र है देवता इसका यह-महेन्द्रीय हवि। सिद्धि-(१) महेन्द्रियम् । यहां प्रथमा-समर्थ, देवतावाची महेन्द्र' प्रातिपदिक से इस सूत्र से 'घ' प्रत्यय होता है। 'आयनेयः' (७।१।२) से घ्' के स्थान में 'इय्' आदेश होता है। (२) माहेन्द्रम् । यहां पूर्वोक्त महेन्द्र' प्रातिपदिक से इस सूत्र से 'अण्' प्रत्यय है। तद्धितेष्वचामादे:' (७।२।११७) से अंग को आदिवृद्धि होती है। (३) महेन्द्रीयम् । यहां पूर्वोक्त महेन्द्र' प्रातिपदिक से इस सूत्र से छ' प्रत्यय है। 'आयनेय०' (७।१।२) से 'छ्' के स्थान में 'ईय् आदेश होता है। ट्यण (६) सोमाट् ट्यण् ।२६। प०वि०-सोमात् ५।१ ट्यण् १।१ । अनु०-सा, अस्य, देवता इति चानुवर्तते। अन्वय:-सा सोमाद् अस्य ट्यण देवता। अर्थ:-सा इति प्रथमासमर्थात् सोमात् प्रातिपदिकाद् अस्य इति षष्ठ्यर्थे ट्यण् प्रत्ययो भवति, यत् प्रथमासमर्थं देवता चेत् सा भवति। उदा०-सोमो देवताऽस्य-सौम्यं हविः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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