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________________ ५५५ तृतीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः उदा०-(त) स कृषीष्ट । वह शुभ कर्म करे। तौ कृषीयास्ताम् । वे दोनों शुभ कर्म करें। (थ) त्वं कृषीष्ठा: । तू शुभ कर्म कर। युवां कृषीयास्थाम् । तुम दोनों शुभ कर्म करो। सिद्धि- (१) कृषीष्ट । कृ+लिङ्। कृ+सीयुट्+त। कृ+सीय+सुट्+त । कृसी०+स्+त। कृ+षी+स्+ट। कृषीष्ट। यहां डुकृञ् करणे (तनाउ०) धातु से 'आशिषि लिङ्लोटौ' (३।३।१७३) से आशीर्लिङ् अर्थ में लिङ्' प्रत्यय है और उसके लादेश त' प्रत्यय को इस सूत्र से 'सुट' आगम होता है। लिङ: सीयुट्' (३।३।१०२) से सीयुट्' आगम है। 'आदेशप्रत्यययो:' (८।२।५९) से षत्व और 'ष्टुना ष्टुः' (८।४।४०) से टुत्व होता है। (२) कृषीयास्ताम् । यहां 'आताम्' प्रत्यय के त' को सुट्' आगम है। (३) कृषीष्ठा: । यहां थास्' प्रत्यय के 'थ' को सुट् आगम और पूर्ववत् षत्व और ष्टुत्व होता है। (४) कृषीयास्थाम् । यहां 'आथाम्' प्रत्यय के 'थ' को 'सुट' आगम है। जुस्-आदेशः (लिङि) (१०) झेर्जुस् ।१०८। । प०वि०-झे: ६ ।१ जुस् १।१। अनु०-लस्य, लिङ इति चानुवर्तते । अन्वय:-धातोर्लिङो लस्य झेर्जुस् । अर्थ:-धातो:' प लिड्सम्बन्धिनो लादेशस्य झि-स्थाने जुस्-आदेशो भवति। उदा०-ते पचेयुः । ते यजेयुः । आर्यभाषा-अर्थ-(धातोः) धातु से परे (लिङः) लिङ सम्बन्धी (लस्य) लादेश के (झे:) झि-प्रत्यय के स्थान में (जुस्) जुस् आदेश होता है। उदा०-ते पचेयुः । वे सब पकावें । ते यजेयुः । वे सब यज्ञ करें। सिद्धि-(१) पचेयुः। पच्+लिङ्। पच्+शप्+यासुट्+झि। पच्+अ+यास्+जुस् । पच्+अ+याo+उस् । पच्+अ+इय्+उस्। पच्+अ+इo+उस्। पचेयुः । ___ यहां पूर्वोक्त ‘पच्' धातु से विधिनिमन्त्रण०' (३।३।१६१) से 'लिङ्' प्रत्यय और उसके लादेश 'झि' प्रत्यय के स्थान में इस सूत्र से जुस्' आदेश है। ‘यासुट् परस्मैपदेषु०' (३।४।१०३) से 'यासुट्' आगम होता है। कर्तरि शप' (३।११६८) से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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