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________________ २६६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (६) प्रतियोधी। प्रति उपसर्गपूर्वक 'युध सम्प्रहारे' (दि०आ०)। (७) प्रतियोगी। प्रति उपसर्गपूर्वक 'युजिर् योगे (रुधा०प०)। (८) प्रतियामी। प्रति उपसर्गपूर्वक या प्रापणे' (अदा०प०)। (९) आयामी। आङ् उपसर्गपूर्वक पूर्वोक्त या' धातु । (१०) भावी । 'भू सत्तायाम्' धातु से 'भुवश्च' (उ० ४।८) इनि' प्रत्यय और 'इनि' प्रत्यय के णिद्वत् होने से 'अचो णिति (७।२।११५) से 'भू' धातु को वृद्धि होती है। लट् (२) यावत्पुरानिपातयोर्लट् ।४। प०वि०-यावत्-पुरानिपातयो: ७ ।२ लट् १।१ । स०-यावच्च पुरा च तौ यावत्पुरौ, यावत्पुरौ च तौ निपातावितियावत्पुरानिपातौ, तयोः-यावत्पुरानिपातयोः (इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भितकर्मधारयः)। अनु०-भविष्यति इत्यनुवर्तते। अन्वय:-यावत्पुरानिपातयोर्धातोर्भविष्यति लट् । अर्थ:-यावत्पुरानिपातयोरुपपदयोर्धातोः परो भविष्यति काले लट प्रत्ययो भवति। उदा०-(यावत्) यावद् भुङ्क्ते देवदत्तः। (पुरा) पुरा भुङ्क्तें यज्ञदत्तः। आर्यभाषा-अर्थ-(यावत्पुरानिपातयोः) यावत् और पुरा निपात शब्द उपपद होने पर (धातो:) धातु से परे (भविष्यति) भविष्यत्काल में (लट्) लट् प्रत्यय होता है। उदा०-(यावत्) यावद् भुङ्क्ते देवदत्तः । देवदत्त जब तक खायेगा। (पुरा) पुरा भुङ्क्ते यज्ञदत्तः । यज्ञदत्त पहले खायेगा। सिद्धि-(१) भुङ्क्ते । भुज+लट् । भु+त्। भु श्नम् ज्+ते। भुज्+ते। भुज्+ते। भ-ग्+ते। भुक्+ते। भुङ्क्+ते। भुङ्क्ते। यहां भुज पालनाभ्यवहारयोः' (रुधा०प०) धातु से इस सूत्र से भविष्यत्काल में लट् प्रत्यय है। 'भुजोऽनवने (१११६६) से 'भुज्' धातु से खाने अर्थ में आत्मनेपद होता है। रुधादिभ्यः श्नम्' (३।१।७८) से श्नम्' विकरण प्रत्यय, नश्चापदान्तस्य झलि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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