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________________ ४७२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् विशेष-(१) राजपूर्वा-जब सभा शब्द का, राजा शब्द पूर्वपद होता तब समस्तपद नपुंसकलिङ्ग नहीं होता है, जैसे-राज्ञ: सभा इति राजसभा। राजा का भवन। (२) अमनुष्यपूर्वा-पाणिनिमुनि के मत में समाज के मनुष्य और अमनुष्य दो भेद हैं। 'मनोर्जातावञ्यतौ षुक् च' (४।१।६१) के प्रमाण से मनु के सन्तान मनुष्य अथवा मानव कहाते हैं और शेष अमनुष्य अर्थात् राक्षस आदि हैं। जब सभा शब्द का कोई मनुष्यवाची शब्द पूर्वपद होता है तब नपुंसकलिग नहीं होता है जैसे-देवदत्तस्य सभा इति देवदत्तसभा । देवदत्त का घर। सभान्तस्तत्पुरुषः (८) अशाला च ।२४। प०वि०-अशाला १।१। च अव्ययपदम् । स०-शाला गृहमित्यर्थः । न शाला इति अशाला (नञ्तत्पुरुषः)। अनु०-नपुंसकम्, तत्पुरुषोऽनकर्मधारय: सभा इति चानुवर्तते। अन्वय:-अनकर्मधारयोऽशालार्थश्च सभान्तस्तत्पुरुषो नपुंसकम्। अर्थ:-नकर्मधारयभिन्न: शालार्थवर्जित: सभान्तस्तत्पुरुषो नपुंसकलिङ्गो भवति । सभाशब्दोऽत्र समुदायवचनो गृह्यते। उदा०-स्त्रीणां सभा इति स्त्रीसभम् । दासीनां सभा इति दासीसभम् । आर्यभाषा-अर्थ-(अनकर्मधारयः) नञ् और कर्मधारय से भिन्न (अशाला च) और शाला अर्थ से रहित (सभा) सभा शब्द जिसके अन्त में है वह (तत्पुरुषः) तत्पुरुष समास (नपुंसकम्) नपुंसकलिङ्ग होता है। यहां 'सभा' शब्द समुदायवाची ग्रहण किया जाता है। उदा०-स्त्रीणां सभा इति स्त्रीसभम् । स्त्रियों का समुदाय । दासीनां सभा इति दासीसभम् । दासियों का समूह । सिद्धि-स्त्रीसभम् । स्त्री+आम्+सभा+सु । स्त्रीसभ+सु । स्त्रीसभम्। यहां स्त्री और सभा शब्द का षष्ठी (२।२।८) से षष्ठी तत्पुरुष है। इस सूत्र से समस्तपद नपुंसकलिङ्ग है। नपुंसकलिङ्ग होने से 'हस्वो नपुंसके प्रातिपदिकस्य (१२।४७) से सभा शब्द को ह्रस्व होता है। नपुंसकलिङ्ग़ में 'अतोऽम्' (७।१।२४) से 'सु' के स्थान में 'अम्' आदेश होता है। विशेष-यहां शाला अर्थ का निषेध इसलिये किया गया है कि यहां नपुंसकलिङ्ग न हो जैसे-अनाथसभा। अनाथ की कुटी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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