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________________ द्वितीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः ४६१ यहां विभाषा वचन से समाहार और इतरेतरयोग दोनों प्रकार का द्वन्द्व समास होता है। जहां समाहार है वहां समुदाय और जहां इतरेतरयोग है वहां उन पदार्थों के परस्पर संयोग का कथन किया जाता है। संस्कृतभाषा में दोनों प्रकार का विग्रह करके उदाहरण दिखाये गये हैं। विस्तार भय से यहां पुन: नहीं लिखे जाते हैं। यहां केवल उनका अर्थ दर्शाया जाता है (२) मृग - रुरुपृषतम् । रुरु = हरिण और पृषत = चित्तीदार हरिणों का संघ । रुरुपृषता: । हरिण और चित्तीदार हरिणों का संयोग । (३) तृण-कुशकाशम् । डाभ और कांस नामक घास का ढेर । कुशकाशा: । डाभ और कांस नामक घास का संयोग । (४) धान्य- व्रीहियवम् । चावल और जौ का मिश्रित ढेर । व्रीहियवाः । चावल और जौ का संयोग । (५) व्यञ्जन- - दधिघृतम् । दही और घी मिश्रित । दधिघृते । दही और घी का संयोग । (६) शकुनि (पक्षी) - तित्तिरिकपिञ्जलम् । तीतर और पपीहा पक्षियों का संघ । तित्तिरिकपिञ्जला: । तीतर और पपीहा पक्षियों का संयोग । (७) अश्ववडवम् - अश्ववडवम् । घोड़ा और घोड़ी का संघात । अश्ववडवौ । घोड़ा और घोड़ी का संयोग । (८) पूर्वापर - पूर्वापरम् । पूर्व और अपर दिशा की सन्धि । पूर्वापरे । पूर्व और अपर दिशा का संयोग । (९) अधरोत्तर - अधरोत्तरम् । ऊपर और नीचे की सन्धि । अधरोत्तरे । नीचे और ऊपर का संयोग । सिद्धि - (१) प्लक्षन्यग्रोधम् । प्लक्ष+जस् । न्यग्रोध+ जस्। प्लक्षन्यग्रोध- सु । प्लक्षन्यग्रोधम् । यहां वृक्षवाची प्लक्ष और न्यग्रोध शब्दों के समाहार द्वन्द्व समास में इस सूत्र एकवद्भाव होगया है । (२) प्लक्षन्यग्रोधाः । प्लक्ष+जस् । न्यग्रोध+जस्। प्लक्षन्यग्रोध+जस्। प्लक्षन्यग्रोधाः । यहां वृक्षवाची प्लक्ष और न्यग्रोध शब्दों के इतरेतरयोग समास में विकल्प पक्ष में एकवचन नहीं अपितु बहुषु बहुवचनम् ' (१/४ / २१ ) से बहुवचन होगया है । ऐसे ही अन्य उदाहरणों में भी समझ लेवें । विशेष- समाहार अर्थ में दो पदार्थों का संघात होता है और इतरेतरयोग में दो vara का संयोग मात्र होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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