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________________ ४४६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् क्रियायां क्रियार्थायाम् (३।३।१०) से ण्वुल' प्रत्यय है। इसके प्रयोग में कट' शब्द में कर्तृकर्मणो: कृति:' (२।३।६५) से प्राप्त षष्ठी विभक्ति नहीं होती है। कर्मणि द्वितीया' (२।३।२) से द्वितीया विभक्ति होती है। (२) ग्रामं गमी देवदत्तः। 'गम्लु गतौं' (भ्वा०प०)। गमी शब्द 'भविष्यति गम्यादयः' (३।३।३) में भविष्यत् काल में निपातित है। इसके प्रयोग में कर्तकर्मणो: कृति (२।३।६५) से प्राप्त षष्ठी विभक्ति नहीं होती है अपितु पूर्ववत् द्वितीया विभक्ति होती है। ऐसे ही-नगरं गामी यज्ञदत्तः। (३) शतं दायी देवदत्तः। डुदाञ् दाने (जु०उ०) दा+णिनि। दा+इन्। दा+युक्+इन्। दायिन्+सु। दायी। यहां 'दा' धातु से 'आवश्यकाधर्मण्ययोर्णिनि:' (३।३।१७०) से आधमर्ण्य (ऋणी होना) अर्थ में णिनि' प्रत्यय है। इसके प्रयोग में पूर्ववत् षष्ठी विभक्ति का प्रतिषेध होता है तथा पूर्ववत् द्वितीया विभक्ति होती है। कर्तरि वा षष्ठी (२३) कृत्यामा कर्तरि वा ७१। प०वि०-कृत्यानाम् ६ १३ कर्तरि ७ ।१ वा अव्ययपदम् । अनु०-षष्ठी इत्यनुवर्तते। अन्वय:-कृत्यानां प्रयोगे कर्तरि वा षष्ठी। अर्थ:-कृत्यप्रत्ययान्तानां शब्दानां प्रयोगे कतरि विकल्पेन षष्ठी विभक्तिर्भवति। पक्षे तृतीया विभक्तिर्भवति। उदा०-भवत: कट: कर्तव्यः । भवता कट: कर्त्तव्यः । आर्यभाषा-अर्थ- (कृत्यानाम्) कृत्य-प्रत्ययान्त शब्दों के प्रयोग में (कीर) कर्ता कारक में (वा) विकल्प से (षष्ठी) षष्ठी विभक्ति होती है। पक्ष में तृतीया विभक्ति होती है। उदा०-भवत: कट: कर्त्तव्यः। आपको चटाई बनानी चाहिये। भवता' कट: कर्तव्यः । अर्थ पूर्ववत् है। __ सिद्धि-भवत: कट: कर्त्तव्यः । डुकृञ् करणे (तना०उ०)। कृ+तव्य । कर+तव्य। कर्तव्य+सु । कर्त्तव्यः । यहां कृ' धातु से तव्यत्तव्यानीयरः' (३।१।९६) से कृत्य-संज्ञक तव्य' प्रत्यय है। इस सूत्र से इसके कर्ता 'भवत्' शब्द में षष्ठी विभक्ति है। पक्ष में 'कर्तृकरणयोस्तृतीया' (२।३।२८) से तृतीया विभक्ति होती है। तयोरेव कृत्यक्तखला :' (३।४।७०) से कृत्य संज्ञक प्रत्यय भाव और कर्मवाच्य में होते हैं। इसलिये कर्ता अकथित रहता है। अकथित कर्ता में पूर्वोक्त सूत्र से तृतीया विभक्ति होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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