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________________ प्रथमाध्यायस्य द्वितीयः पादः . १२६ आर्यभाषा-अर्थ-(नक्षत्रे) नक्षत्रवाची (फल्गुनी-प्रोष्ठपदयो:) फल्गुनी और प्रोष्ठपदा शब्दों के (द्वयोः) द्विवचन में (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (बहुवचनम्) बहुवचन होता है। उदा०-(फल्गुनी) द्विवचन-कदा पूर्वे फल्गुन्य: । बहुवचन-कदा पूर्वाः फल्गुन्यः । पूर्वा फल्गुनी नक्षत्र कब है ? (प्रोष्ठपदा) द्विवचन-कदा पूर्वे प्रोष्ठपदे। बहुवचन-कदा पूर्वाः प्रोष्ठपदाः । पूर्वा प्रोष्ठपदा नक्षत्र कब है? विशेष-(१) नक्षत्रों के नाम-अश्विनी (अश्वयुक्) । भरणी। कृत्तिका। रोहिणी। मृगशीर्ष (मृगशिरः, आग्रहायणी)। आर्द्रा। पुनर्वसु । पुष्य (सिध्य, तिष्य)। आश्लेषा। मघा। पूर्वा फल्गुनी। उत्तरा फल्गुनी। हस्त। चित्रा। स्वाति। विशाखा। अनुराधा। ज्येष्ठा। मूल। पूर्वाषाढा। उत्तराषाढा। श्रवण। धनिष्ठा (श्रविष्ठा)। शतभिषज् । पूर्वा भाद्रपदा (पूर्वा प्रोष्ठपदा)। उत्तरा भाद्रपदा (उत्तरा प्रोष्ठपदा)। रेवती। ये २७ सत्ताईस नक्षत्र होते हैं। अथर्ववेद का० १९ सू० ७ में २८वें अभिजित् नक्षत्र का भी वर्णन है। 'अष्टाविंशानि शिवानि' (अ० १९।८।२)। (२) पूर्वा फल्गुनी दो नक्षत्रों का नाम है, किन्तु उनके द्विवचन में विकल्प से बहुवचन भी होता है। प्रोष्ठपदा (पूर्वा भाद्रपदा, उत्तरा भाद्रपदा) भी दो नक्षत्रों का नाम है किन्तु उनके द्विवचन में विकल्प से बहुवचन भी होता है। द्विवचन-एकवचनविकल्पः ___(४) छन्दसि पुनर्वस्वोरेकवचनम्।६१। प०वि०-छन्दसि ७१ पुनर्वस्वोः ६।२ एकवचनम् ११ । अनु०-नक्षत्रे द्वयोरन्यतरस्याम्' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-छन्दसि नक्षत्रे पुनर्वस्वोर्द्वयोरन्यतरस्यामेकवचनम्। अर्थ:-छन्दसि वैदिकभाषायां नक्षत्रवाचिनो: पुनवस्वोर्द्विवचने विकल्पेन एकवचनं भवति । उदा०-(द्विवचनम्) पुनर्वसू नक्षत्रमदितिर्देवता। (एकवचनम्) पुनर्वसुर्नक्षत्रमदितिर्देवता। पुनर्वसू नाम द्वे नक्षत्रे । तत्र द्वित्वविवक्षायां द्विवचने प्राप्ते पक्षे एकवचन विधीयते। आर्यभाषा-अर्थ-(छन्दसि) छन्द विषय में (नक्षत्रे) नक्षत्रवाची (पुनर्वस्वोः) पुनर्वसु शबद के (द्वयोः) द्विवचन में (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (एकवचनम्) एकवचन होता है। उदा०-(द्विवचन) पुनर्वसू नक्षत्रमदितिर्देवता। (एकवचन) पुनर्वसुर्नक्षत्रमदितिर्देवता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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