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________________ भूमिका ११ में चार पद हैं। इन दो पदों की अनुवृत्ति किस सूत्र से आयी है ? क्या इसी प्रकार अन्य सूत्रों की अनृवृत्ति के मूल सूत्र भी बता सकते हैं ? इस प्रश्न का उस पण्डित के पास कोई उत्तर नहीं था क्योंकि इसका उत्तर केवल अष्टाध्यायीपाठी छात्र/पण्डित ही दे सकता है। २. एक दिन आपने एक और प्रश्न काशी के किसी पण्डित से किया था कि "पुरस्तादपवादा अनन्तरान् विधीन् बाधन्ते नोत्तरान्" इस परिभाषा के अनुसार कौमुदी में वर्णित अनन्तर तथा उत्तर विधियों को जानते हो ? इस परिभाषा का कार्य अष्टाध्यायी क्रम के ज्ञान से ही समझा जा सकता है क्योंकि कौमुदीक्रम में यह परिभाषा निरर्थक हो जाती है। अध्ययन आपने काशी में पं० गौरीशंकर जी से व्याकरण महाभाष्य का अध्ययन किया। इसके अतिरिक्त आपने वहां वेदान्त, मीमांसा और न्यायशास्त्र का अध्ययन तथा अध्यापन भी किया। आप काशी में लगभग १२ वर्ष रहे। अध्ययन-अध्यापन में अत्यन्त मेधावी होने से काशी में 'प्रज्ञाचक्षु' नाम से प्रसिद्ध होगये थे कलकत्ता-निवास (१८१५-२१ ई०) अध्ययन आप काशीनिवास के पश्चात् कई वर्ष गया में रहकर १८१५ ई० में कलकत्ता चले गए थे। उस समय कलकत्ता भारत की राजधानी थी। यहां आपने साहित्य दर्पण, कुवलयानन्द, काव्यप्रकाश, रस गंगाधर तथा नव्य एवं प्राच्य न्यायशास्त्र के ग्रन्थों का अध्ययन किया। इसके अतिरिक्त आयुर्वेद, संगीत, वीणावादन, रत्नपरीक्षा आदि नाना कलाओं में कुशलता प्राप्त की। ____ आप भागीरथी की परिक्रमापूर्वक विद्या अध्ययन करके अपने गुरुवर स्वामी पूर्णानन्द जी से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए हरद्वार पधारे। विद्या-अध्ययन का सब समाचार सुनाया। गुरुवर की प्रसन्नता की कोई सीमा न रही। अलवरनरेश के गुरु अध्यापन आप हरद्वार से शूकर क्षेत्र में आकर १८२३ से १८३२ ई० तक पठन-पाठन तथा योगसाधाना करते रहे। एक दिन वहां अलवरनरेश श्री विनयसिंह से मुलाकात होगई। नरेश की व्याकरणशास्त्र अध्ययन की प्रार्थना पर आप १८३२ ई० में अलवर चले गए। वहां आपने श्री विनयसिंह को व्याकरणशास्त्र पढ़ाने के लिए 'शब्दबोध' नामक ग्रन्थ लिखा जो आज भी अलवर के राजकीय पुस्तकालय सरस्वती भण्डारागार में सं० ३३३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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