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________________ प्रथमाध्यायस्य द्वितीयः पादः उदा०-(कृ) लिङ्-कृणीष्ट। वह करे। (ह) हृषीष्ट। वह हरण करे। (कृ) सिच-अकृत। उसने किया। (ह) अहृत। उसने हरण किया।। सिद्धि-(१) कृषीष्ट । कृ+लिङ् । कृ+सीयुट्+ल् । कृ+सीय+त । कृ+सीय सुट्+त। कृ+सीय+स्+त। कृ+सी++ट । कृषीष्ट। यहां 'डुकृञ् करणे' (तना०उ०) धातु से पूर्ववत् लिङ्' प्रत्यय करने पर 'सार्वधातुकार्धधातुकयो: (७।३।८४) से 'कृ' धातु के गुण प्राप्त होता है, किन्तु लिङ्' प्रत्यय के कित् होने से क्डिति च' (१।१।५) से गुण का निषेध हो जाता है। इसी प्रकार हृञ् हरणे' (भ्वा०प०) धातु से हृषीष्ट शब्द सिद्ध करें। (२) अकृत । कृ+लुङ्। अट्+कृ+लि+ल। अ+कृ+सिच्+त। अ+कृ+स्+त। अ+कृ+o+त। अकृत। यहां डुकृञ करणे (तनाउ०) धातु से पूर्ववत् 'लुङ्' प्रत्यय, चिल' और सिच' आदेश करने पर 'कृ' धातु को सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७।३।८४) से गुण प्राप्त होता है, किन्तु सिच्' प्रत्यय के कित् होने से क्डिति च' (१।११५) से गुण का निषेध हो जाता है। इसी प्रकार हृञ् हरणे (भ्वा०प०) धातु से 'अहृत' शब्द सिद्ध करें। ___ (६) वा गमः ।१३। प०वि०-वा अव्ययपदम्, गम: ५।१। अनु०-‘लिङ्सिचावात्मनेपदेषु झल् कित्' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-गमो झल् लिङ्सिवाचात्मनेपदेषु वा कित्। अर्थ:-गमो धातो: परौ झलादी लिङ्सिचावात्मनेपदेषु विकल्पेन किवद् भवत:। उदा०-(लिङ्) संगसीष्ट । संगंसीष्ट । (सिच्) समगत । समगंस्त। आर्यभाषा-अर्थ-(गम:) गम् धातु से परे (आत्मनेपदेषु) आत्मनेपदविषयक (झल्) आदि (लिङ्सिचौ) लिङ् और सिच् प्रत्यय (वा) विकल्प से (कित्) किद्वत् होते हैं। उदा०-(लिङ्) संगसीष्ट । संगसीष्ट । वह संगति करे। समगत । समगस्त। उसने संगति की। सिद्धि-(१) संगसीष्ट । सम्+गम्+लिङ् । सम्+गम्+ल। सम्+गम्+सीयुट्+ल। सम्+गम्+सीय+त । सम्+गम्+सीय+सुट्+त। सम्+गम्+सी+स्+त। सम्+गम्+सी+ष्+ट । सं+गं+सी++ट । संगसीष्ट । यहां सम्' उपसर्ग पूर्वक गम्लु गतौ (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् लिङ्' प्रत्यय तथा सीयुट् और सुट्' आगम के होने पर लिङ्' के कित् होने से 'अनुदात्तोपदेश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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