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________________ 124 ] पूर्व अशोक का सीधा उत्तराधिकारी कौन था, यह विचार करना हमें आवश्यक है । दुर्भाग्य से जैसा कि डॉ. रायचौधरी कहते हैं किसी कौटिल्य या मैगस्थनीज ने परवर्ती मौर्यों के विषय में कुछ भी उल्लेख नहीं किया है। एक या दो शिलालेख तथा कुछ ब्राह्मण, जैन और बौद्ध ग्रन्थों के सामान्य तथ्यों से अशोक के उत्तराधिकारी का सविस्तृत इतिहास संकलन करना असम्भव है।'' पुराण भी एक मत नही है कि अशोक का उत्तराधिकारी कौन था। भिन्न-भिन्न प्रमाणों के विरोधी कथनों का समामिलन करना सरल काम नहीं है। फिर भी अशोक के पुत्र कुनाल की वास्तविकता सभी स्वीकार करते हैं। उसके परिवर्तियों की दन्तकथाएं भिन्न-भिन्न हैं। कुनाल किन विचित्र संयोगों में अन्धा हो गया था और "राज-व्यवस्था के लिए स्वयम् अशक्त होने पर उसने अपने प्रिय पूत्र सम्प्रति याने जैन अशोक को उसके लिए नियुक्त कराया, इसका रोचक वर्णन हेमचन्द्र से हमें मिलता है। इस सम्प्रति को जैन और बौद्ध दोनों ही लेखक अशोक का अनन्तर उत्तराधिकारी मानते हैं।" अशोक का उत्तराधिकारी सम्प्रति को मान लेने में बस एक ही कठिनाई हमारे सामने उपस्थिति होती है और वह है दशरथ की यथार्थता कि जिसने, जैसा कि हम पहले ही देख पाए हैं, नागार्जुनी पहाड़ी की गुफा आजीविकों को भेट की थी। इस कठिनाई का एक सम्भव स्पष्टीकरण यही दीखता है कि अशोक के पौत्रों के रूप में दोनों ही ने एक ही समय में राज्य किया होगा। हालांकि सम्प्रति अशोक का सीधा ही उत्तराधिकारी था अथवा यह कि बौद्ध एवम् जैन दोनों ही ने दशरथ की उपेक्षा कर दी है। इन दोनों सम्भावनामों में पहली बहुतांश में वास्तविक लगती है क्योंकि सम्प्रति का नाम मगध की राजवंशावली में सर्वानमति से सम्मिलित हुअा है। इस प्रकार इस बात में जरा भी सन्देह नहीं है कि सम्प्रति मौर्य सम्राटों में इतना महान् था कि सब ने उसका नाम मगध राजवंशावली में गिनाया है। उसके जैनधर्म के प्रति उत्साह के विषय में नि:संकोच यह कहा जा सकता है कि उत्तर भारत के जैन इतिहास में देदीप्यमान नक्षत्रों में से वह भी एक है । जैनधर्म प्रसार के विषय में जैन उल्लेखों में सम्प्रति का उतना ही ऊचा नाम है जितना कि बौद्ध उल्लेखों में अशोक का है । स्मिथ कहता है कि सम्प्रति जैनधर्म का प्रचार करने में उतना ही उत्साही था जितना कि अशोक गौतम के बुद्धधर्म प्रचार में था। 1. रायचौधरी, वही, पृ. 220 ।। 2. देखो पार्जीटर, वही, प. 28, 70; कोव्यल एण्ड नील, वही, पृ. 430%; कल्पसूत्र, सुबोधिका-टीका, सूत्त 163; रायचौधरी, वही १. 221। 3. देखो याकोबी, वही, प. 63-64; कोव्यल एण्ड नील, वही, पृ. 433; रायचौधरी, वही, वही, पृ; भण्डारकर, वही, वही पृ. । 4. सम्प्रति के विषय की बौद्ध और जैन दन्तकथानों का निर्देश पिछले टिप्पण में किया जा चुका है । परा दन्तकथा के लिए देखो पार्जीटर, वही, पृ. 28,70। देखो रायचौधरी, वही, पृ. 220 1 "संभव है कि दशरथ और सम्प्रति दोनों ही में साम्राज्य बांट दिया गया हो।" -स्मिथ, वही, पृ. 230 । 5. स्मिथ, आक्सफार्ड हिस्ट्री आफ इण्डिया, पृ. 117 और टि. 1 । देखो भण्डारकर, वही, वही स्थान; संप्रति... पिता महदत्तराज्यो रथयात्राप्रवृत्त श्री आर्यसुहस्तिनदर्शनाज्जातजातिस्मृतिः...जिनालय सपादकोटि...अकरोत । कल्पसूत्र, सुबोधिका-टीका, सूत्र 6 पृ. 163 ।' प्रायः सारे प्राचीन जैन मन्दिर या अज्ञात-मूल स्मारक सभी एक स्वर से सम्प्रति निर्मित कहे जाते हैं कि जो वास्तव में जैन अशोक के समान ही माना जाता है।'-स्मिथ, ग्री हिस्ट्री आफ इण्डिया, पृ. 202 । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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