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नवस्मरणादिसङ्ग्रहे
बहुविहवन्नु अवन्नु सुन्नु वन्न छप्पन्निहि, मुक्खधम्मकामत्थकाम नर नियनियसत्थिहि । जं झायहि बहुदरिसणत्थ बहुनामपसिद्धउ, सो जो अमणकमलभसल सुहु पास पवद्धउ ॥ ९ ॥ भयविन्भल रणझणिरदसण थरहरियसरीरय, तरलियनयण विसरण सुण्ण गग्गिरगिर करुणया । तइ सहसन्ति सरंति हुंति नर नासियगुरुदर, मह विज्झवि सज्झसह पास ! भयपंजरकुंजर ! ॥ १० ॥ प पासिवि वियसंतनित्तपत्तंतपवित्तिय
बाहपवाहपवूढरूढदुहदाह सुपुलइय ।
मण्णइ मण्णु सउण्णु पुण्णु अप्पाणं सुर-तर, इय तिहुअणआनंदचंद ! जय पास जिणेसर ! ॥ ११ ॥ तुह कल्लाणमहेसु घंटट कारवपिल्लिय, वल्लिरमल्ल महल्लभत्ति सुरवर गंजुल्लिय । हल्लुप्फलिय पवत्तयंति भुवणे वि मह्सव, इय तिहुअणआणंदचंद ! जय पास ! सुहुन्भव ! ॥ १२ ॥ निम्मलकेवल किरणनियरविहुरिअतमपहयर 1, दंसियमयलपयत्थसत्य ! वित्थरियपहाभर ! | कलिकलु सिअजणघूयलोयलोयणह अगोयर !, तिमिरह निरु हर पासनाह ! भुवणत्तयदिणयर ||१३|| - तुह समरणमलवरिससित माणवमइमेइणि, अवरावरसुहुमत्थषोहकंदलदल रेहणि ।
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