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श्रीगौडीपार्वजिनवृद्धस्तवन । तुझने होसी बहुफलदायक, भाई गोठी ते सुणजे जी । पूजीस प्रणमीस तेहना पाया, प्रह ऊठीने थुणजे जी ॥ए०॥१५॥ सुहणो देईने सुर चाल्यो, आपणे थानक पहुंतो जी। पाटण माहे सारथवाहु, हीडे तुरकने जोतो जीए०॥१६॥ तुरकै जातां दीठो गोठी, चोखा तिलक लिलाडै जी। संकेत पहुतो साचो जाणि, बोलावै बहु लाडे जी ॥ए०॥१७॥ मुझ घर प्रतिमा तुझने आपुं, पास जिणेसर केरी जी। पांच सै टक्का जो मुझ आपै, मोल न मागु फेरी जी ॥ए०॥१८॥ नाणो देई प्रतिसा लेई, थानक पहुंतो रंगै जी। केसर चंदन मृगमद घोली, विधिसुं पूजे चंगै जी ॥ए०॥१९॥ गादी रूडी रूनी कीधी, ते माहे प्रतिमा राखै जी। अनुक्रम आव्या परिकर मांहे, श्री संघ ने सुर साखै जी ए०॥२०॥ उच्छव दिन दिन आधिका थाये, सत्तर भेद सनात्रो जी। ठाम ठाम ना दरसण करवा, आवै लोक प्रभातो जी ए०॥२१॥
(दोहा) इकदिन देखे अवधिसुं, परिकरपुरनो भङ्ग । जतन करूं प्रतिमा तणो, तीरथ अछे अभंग ॥२२॥ सुहणो आपै सेठने, थल अटवी ऊजाड । महिमा थास्यै अति घगी, प्रतिमा तिहां पहुँचाड ।।२३।। कुशल क्षेम तिहां अछ, तुझने मुझने जाण । संका छाडी काम कर, करतो म करीस काण ॥२४॥
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