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पचपरमेहिनमारः। इत्थीलिंगे सिद्धा पुरिसेण णपुंसएण जे सिद्धा। पत्तेयबुद्धसिद्धा बुद्ध-सयंबुद्धसिद्धा य ॥२१।। जेवि णिसण्णा सिद्धा अहव णिवण्णाठिया व उस्सग्गे। उत्ताणयपासेल्ला सत्वे वंदामि तिविहेण ॥२२॥ णिसि-दियस-पदोसे वा सिद्धा मज्झण्ह-गोसकाले वा। कालविवक्खासिद्धा सब्वे वंदामि भावेण ॥२३॥ जोव्वणसिद्धा बाला थेरा तह मज्झिमा य जे सिद्धा। दीव-ऽण्णदीवसिद्धा सव्वे तिविहेण वंदामि ॥२४॥ दिव्वावहारसिद्धा समुद्दसिद्धा गिरीसु जे सिद्धा। जे केइ भावसिद्धा सव्वे तिविहेण वंदामि ॥२५॥ जे जत्थ केइ सिद्धा काले खेत्ते य दब्व भावे वा। ते सव्वे वंदे हं सिद्धे तिविहेण करणेण ॥२६॥ सिद्धाण णमोकारो जह लगभइ आगए मरणकाले। ता होइ सुगइमग्गो अण्णो सिद्धिं पि पावेह ॥२७॥ सिद्धाण णमोकारो जइ कीरइ भावओ असंगहि । रुभइ कुगईमग्गं सग्गं सिद्धिं च पावे ॥२८॥ सिद्धाण णमोकारं तम्हा सव्वायरेण काहामि । छेत्तूण मोहजालं सिद्धिपुरि जेण पाबेमि ॥२९॥
पणमामि गणहराणं जिणवयणं जेहिं सुखबंधेणं। बंघेऊण तह कयं पत्तं अम्हारिसा जाव ॥३०॥
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