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________________ डालनेके लिये स्याही की चालू दावात में तेल डाल देते जिससे कलमके ऊपर स्याही ही जमने न पाती और उसके दाग़ कागज़ पर पड़ने लगते । खास करके ऐसा काम कोई कोई मारवाड़ी लहिए ही करते थे किन्तु ऐसी प्रवृत्तिको कुसमादी - कमीनापन ही कहा जाता था। कुछ लहिए जिस फट्टी पर पन्ना रखकर पुस्तक लिखते उसे ख़डी रख करके लिखते तो कुछ आड़ी रख कर लिखते, जब कि काश्मीरी लहिए ऐसे सिद्धहस्त होते थे कि पन्ने के नीचे फट्टी या वैसा कोई सहारा रखे विना ही लिखते थे । अधिकतर लहिए आड़ी फट्टी रख कर ही लिखते हैं, परन्तु जोधपूरी लहिए फट्टी खड़ी रखकर लिखते हैं। उनका मानना है कि " आड़ी पाटीसे लुगाइयाँ लिखें, मैं तो मरद हो सा !" इसके अतिरिक्त अपने धन्धेके बारे में ऐसी बहुतसी बातें है जिन्हें लहिए पसन्द नहीं करते । वे अपनी बैठनेकी गदी पर दूसरे किसीको बैठने नहीं देते, अपनी चालू दावातमें से किसीको स्याही भी नहीं देते और अपनी चाल कलम भी किसीको नहीं देते। लहियों के बारेमें इस तरहक विविध हकीकतोंके सूचक बहुतसे सुभाषित आदि हमें प्राचीन ग्रन्थोंमें से मिलते हैं जो उनके गुण-दोष, उनके उपयोगकी वस्तुओं तथा उनके स्वमान आदिका निर्देश करते हैं। जिस तरह लहिए ग्रन्थ लिखते थे उसी तरह जैन साधु, साध्वी, श्रावक एवं श्राविकाएँ भी साठवपरिपूर्ण लिपिसे शास्त्र लिखते थे। जैन साध्वियों द्वारा तथा देवप्रसाद (वि. सं. ११५७ ) जैसे श्रावक अथवा सावदेव (अनुमानतः विक्रमकी १४वीं शती), रूपादे आदि श्राविकाओ द्वारा लिखे गए ग्रन्थ तो यद्यपि बहुत ही कम हैं परन्तु जैन साधु एवं जैन आचार्योंके लिखे ग्रन्थ तो सैकड़ों की संख्या में उपलब्ध होते हैं । पुस्तके प्रकार प्राचीन कालमें (लगभग विक्रमकी पाँचवीं शतीसे लेकर ) पुस्तकोंके आकार-प्रकारपर से उनके गण्डीपुस्तक, मुष्टिपुस्तक, संपुटफलक, छेदपाटी जैसे नाम दिए जाते थे । इन नामोंका उल्लेख निशीथभाष्य और उसकी २० ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003284
Book TitleGyanbhandaro par Ek Drushtipat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1953
Total Pages30
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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