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________________ लेखन विषयक सामग्री ताड़पत्र और कागज़ ज्ञानसंग्रह लिखवानेके लिये भिन्न भिन्न प्रकार के अन्छेसे अन्छे ताड़पत्र और कागज़ अपने देशके विभिन्न भागोंमें से मंगाए जाते थे। ताड़पत्र मलबार आदि स्थानों में से आते थे । पाटन और खम्भातके ज्ञानभाण्डारोंमें से इस बारेके पन्द्रहवीं शतीके अन्तके समयके उल्लेख उपलब्ध होते हैं । वे इस प्रकार हैं: ॥सं १४८९ वर्षे ज्ये० वदि । पत्र ३५५ मलबारनां ॥ वर्य पथल संचयः ।। श्री॥ ____पाटनके भाण्डारम स मा इसास मिलता-जुलता उल्लख मिला था। उसमें तो एक पन्नेकी कीमत भी दी गई थी। यद्यपि वह पन्ना आज अस्तव्यस्त हो गया है फिर भी उसमें आए हुए उल्लेखके स्मरणके आधार पर एक पन्ना छह आनेका आया था। ग्रन्थ लिखनेके लिये जिस तरह ताड़पत्र मलबार जैसे सुदूरवर्ती देशसे मंगाए जाते थे उसी तरह अछ जातके कागज़ काश्मीर और दक्षिण जैसे दूरके देशोंसे मंगाए जाते थे | गुजरातमें अहमदाबाद, खम्भात, सूरत आदि अनेक स्थानोंमें अच्छे और मज़बूत काग़ज़ बनते थे। इधरके व्यापारी अभी तक अपनी बहियोंके लिये इन्हीं स्थानों के कागजका उपयोग करते रहे हैं । शास्त्र लिखनेके लिये सूरत से कागज़ मंगाने का एक उल्लेख संस्कृत पद्यमें मिलता है। वह पद इस प्रकार है: " सुरापुरतः कारकपत्राण्यादाय चेतसा भक्त्या । लिखिता प्रतिः प्रशस्ता प्रयत्नतः कनकसोमेन ॥" इसका सारांश यह है कि सूरत शहरसे कोरे कागज़ ला करके हार्दिक भक्तिसे कनकसोम नामक मुनिने प्रयत्नपूर्वक यह प्रति लिखी है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003284
Book TitleGyanbhandaro par Ek Drushtipat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1953
Total Pages30
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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