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________________ उसका वार्तिक, वार्तिक परकी तात्पर्यटीका और तात्पर्यटीका पर तात्पर्यपरिशुद्धि तथा इन पाँचों ग्रन्थोंके ऊपर विषमपदविवरणरूप 'पंचप्रस्थान' नामक एक अपूर्व ग्रन्थ इसी संग्रहमें है । बौद्ध परम्पराके महत्त्वपूर्ण तर्क-ग्रन्थोंमेंसे सटीक सटिप्पण न्यायबिन्दु तथा सटीक सटिप्पण तत्त्वसंग्रह जैसे कई ग्रन्थ हैं । यहाँ एक वस्तुकी ओर मैं ख़ास निर्देश करना चाहता हूँ जो संशोधकोंके लिये उपयोगी है । अपभ्रंश भाषाके कई अप्रकाशित तथा अन्यत्र अप्राप्य ऐसे बारहवीं शतीके बड़े बड़े कथा-ग्रंथ इस भाण्डारमें हैं, जैसे कि विलासवईकहा, अरिठ्ठनेमिचरिउ इत्यादि । इसी तरह छन्द विषयक कई ग्रन्थ हैं जिनकी नक़लें पुरातत्त्वकोविद श्री जिनविजयजीने जेसलमेरमें जाकर कराई थी। उन्हीं नकलोके आधार पर प्रोफेसर वेलिनकरने उनका प्रकाशन किया है । खम्भातके श्रीशान्तिनाथ ताड़पत्रीय-ग्रन्थभाण्डारकी दो-एक विशेषताएँ ये हैं। उसमें चित्र समृद्धि तो है ही, पर गुजरातके सुप्रसिद्ध मंत्री और विद्वान् वस्तुपालकी स्वहस्तलिखित धर्माभ्युदय-महाकाव्यकी प्रति है । पाटनके तीन ताड़पत्रीय संग्रहोंकी अनेक विशेषताएँ हैं। उनमेंसे एक तो यह है कि वहींसे धर्मकीर्तिका हेतुबिन्दु अर्चटकी टीकावाला प्राप्त हुआ जो अभीतक मूल संस्कृतमें कहींसे नहीं मिला। जयराशिका तत्वोपप्लव जिसका अन्यत्र कोई पता नहीं वह भी यहींसे मिला। कागज़-ग्रन्थके अनेक भाण्डारों से चार-पाँचका निर्देश हो यहाँ पर्याप्त होगा। पाटनगत तपागच्छका भाण्डार गुजराती, राजस्थानी, हिन्दी और फ़ारसी भाषाके विविध विषयक सैकड़ों ग्रन्थोंसे समृद्ध है जिसमें 'आगमडम्बर' नाटक भी है, जो अन्यत्र दुर्लभ है । पाटनगत भाभाके पाडेका भाण्डार भी कई दृष्टिसे महत्त्वका है। अभी अभी उसीमेंसे छठी-सातवीं शतीके बौद्ध तार्किक आचार्य श्री धर्मकीर्तिके सुप्रसिद्ध 'प्रमाणवार्तिक' ग्रन्थको स्वोपज्ञ वृत्ति मिली है जो तिब्बतसे भी आजतक प्राप्त नहीं हुई । खम्भातस्थित जैनशालाका भाण्डार भी महत्त्व रखता है। उसीमें वि. सं. .१२३४की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003284
Book TitleGyanbhandaro par Ek Drushtipat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1953
Total Pages30
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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