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________________ आचार्य विद्यानन्दि का भारतीय दर्शन को अवदान __डॉ. अशोककुमार जैन विभागाध्यक्ष, जैन-बौद्ध दर्शन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वारणसी जैन न्याय जगत में आचार्य विद्यानन्दि का नाम विश्रुत है। इन्होंने प्रमाण और दर्शन सम्बन्धी ग्रन्थों की रचना कर श्रुत परम्परा को गतिशील बनाया है। वे महान् तार्किक आचार्य हैं। प्रत्येक दर्शन के मूल ग्रन्थों का अन्तःप्रविष्ट अध्ययन कर उनमें वर्णित सिद्धान्तों की उन्होंने समीक्षा की। विभिन्न मनीषियों ने ऊहापोह कर उनका समय 775-840 ईसवी प्रमाणित किया है। उनके पूर्वाचार्यों द्वारा प्रणीत ग्रन्थों पर तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, अष्टसहस्त्री, युक्त्यनुशासनालंकार टीका ग्रन्थ हैं तथा विद्या द्वारा प्रणीत, आप्तपरीक्षा, प्रमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, सत्यशासनपरीक्षा, श्रीपुरपार्श्वनाथस्तोत्र आदि प्रमुख ग्रन्थ हैं। उनका दर्शनान्तरीय अभ्यास गहन था। न्याय, वैशेषिक, मीमांसा, चार्वाक, सांख्य और बौद्धदर्शनों के सिद्धान्तों को जब वे अपने ग्रन्थों में पूर्व पक्ष के रूप में जिस विद्वत्ता एवं प्रामाणिकता से रखते हैं तब उससे लगने लगता है कि अमुक दर्शनकार ही अपना पक्ष उपस्थित कर रहा है। मीमांसा दर्शन का जैसा और जितना सबल खण्डन तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक में पाया जाता है वैसा और उतना जैन वाङ्मय की किसी भी उपलब्ध कृति में नहीं है। जैनदर्शन के सिद्धान्तों को उन्होंने तार्कित शैली में प्रतिपादन किया। निश्चय-व्यवहार, निमित्त-उपादान, अनेकान्त, स्याद्वाद, सप्तभङ्गी, नयवाद एवं प्रमाण का सम्यक् प्रतिपादन कर उनकी अबाध्यता को निरूपित किया। भारतीय दार्शनिक चिन्तन परम्परा में उनकी प्रतिभा एवं विद्वत्ता अनुपम है। उनके अवदान के विभिन्न पक्षों को विस्तृत लेख में विवेचन किया जायेगा। भारतीय दर्शन को जैन दार्शनिकों का अवदान/27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003248
Book TitleBhartiya Darshan ko Jain Darshaniko ka Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2011
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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