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________________ दूसरा अध्ययन –(6)शय्या * कैसे स्थान में रहे कैसे में न रहे ? भिन्तु को ठहरने की जरूरत हो तो वह गांव, नगर या राजधानी में जावे । [६४] वहाँ वह स्थान अंडे, जीवजन्तु और जाला श्रादिसे भरा हुआ हो तो उसमें न ठहरे; परन्तु यदि ऐसा न हो तो उसको अच्छी तरह देखभालकर, माइ-बुहार कर सावधानी से प्रासन, शय्या करके ठहरे। जिस मकान को गहस्थ ने एक या अनेक सहधर्मी भिक्षु या भिक्षुणी के लिये अथवा श्रमणब्राह्मण के लिये छःकाय जीवों की हिंसा करके तैयार किया हो, खरीदा हो, मांग लिया हो, छीन लिया हो (दूसरों का उसमें हिस्सा होने से) बिना श्राज्ञा के ले लिया हो 'या मुनि के पास जाकर कहा हो तो उसको सदोष जानकर भिक्षु उसमें न रहे। और, जो मकान किसी खास श्रमण ब्राह्मण के लिये नहीं पर चाहे जिसके लिये ऊपर लिखे अनुसार तैयार किया गया हो पर यदि पहिले दूसरे उसमें न रहें हो तो उसमें न रहे । परन्तु यदि * शय्या (मूलमें, 'सेजा' ) का अर्थ बिछौना और मकान दोनों लिया गया है। ~ ~ ~ ~ ~ ~ wwwwwwwwww vvvviv Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003238
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size6 MB
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