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जो लोग जैनागमों में जिनप्रतिमा को मानने, वंदन पूजन करने से इन्कार करते हैं वे वि० सं० 1500 अर्थात् छह सौ वर्षों से पुराने माने हुए ऐसे आगम पाठों को दिखला देखें तो उसे किसी को मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। पर ऐसा कहीं भी नहीं है । अतः लुकामत की स्थापना के बाद विक्रम की सोलहवीं शताब्दी से इनके द्वारा किये और माने हुए चैत्य शब्द के अर्थ आगम के अर्थों के विपरीत होने से कितनी मखलना हुई है । उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट ज्ञात है। : 10) चैत्य शब्द का प्रयोग जैनागमों में
अब यहाँ पर चैत्य शब्द का प्रयोग जैनागमों में जिनमूर्ति, जिनमन्दिर, सिद्धायतन, जनस्मारक आदि केलिये कहाँ-कहाँ पर हुआ है उसका भी संक्षेप रूप से दिग्दर्शन किया जाता है । यथा
___ 1. चेइम -- (चैत्य) नपु० चितापर बनाया हुआ स्मारक (स्तूप, समृतिचिन्ह । (आवश्यक सूत्र 2, 2, 3)
2. चेइम-(चैत्य) व्यंतर का मन्दिर (आगम भगवती, उववाई, रायप. सेणी, निग्यावली 1, 1; विशेषावश्यक 1, 1, 2)
3. चेइम-(चैत्य) जिनमन्दिर, जिनगृह, अर्हन्मंदिर (आगम ठाणांग, ठाणा 4 पत्र 430, पंचमांग भगवती, महानिशीथ) ।
4. चेंइअ - (चैत्य) इष्टदेव की मूर्ति, अभिष्ट देवता की मूर्ति, [कल्लाणं मंगलं चे इयं पज्जुवासामि] (औपपातिक, भगवतो आगम)।
5. चेइम-(चैत्य) अर्हत् प्रतिमा, जिनेश्वरदेव की मूर्ति (ठाणांग 3, 1 उववाइ, पण्ह 2, 3; आवश्यक 2 पिंड) [विइपणं उप्पाएणं नन्दीसरे दीवे समोसरणं करेइ तहिं चे इयाई वंदेइ-भगवती 2,9] | [जिनबिंबं मगलं चेइयंति समयन्नुणं विति पव० 9] मंगल तीर्थकर प्रतिमा।
6. चेइअ ---(चैत्यतरुः) पु० वह वृक्ष जिसके नीचे बैठकर तीर्थकर उपदेश देते हैं और जिस वृक्ष के नीचे भगवान को केवलज्ञान होता है उसे चैत्यतरु कहते हैं (ठाणांग 8; समवायांग 10, 156)।
7. चेहअ - (चैत्य) पु० स्तूप, थूभ, स्तम्भ (समवायांग, रायपसेणी, सूर्यप्रज्ञप्ति 18)
8. चेइअघर-(चैत्यगृह) जिनमन्दिर, अर्हन्मंदिर (पउम० 2, 12, .64, 29)।
9. चेइअ-जत्ता-(चैत्य यात्रा) अहन्प्रतिमा सम्बन्धी महोत्सव (धर्म० 3)
10. चेइय थूभ-(चैत्य स्तूप) जैनमन्दिर के समीप का स्तूप। (ठाणांग 4, 2; ज )
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