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भावना जाग्रत होती है और चारित्र की आचरणा से ही मुक्ति मिलती है।
कहने का आशय यह है कि सम्यग्दर्शन प्राप्ति, उसकी शुद्धि निर्मलता के लिए जिन प्रतिमा की वन्दना, पूजा, उपासना करने से और ज्ञान प्राप्ति के लिए जैन आगम - शास्त्रों को गीतार्थ जैन मुनियों द्वारा सुनने तथा स्वयं स्वाध्याय करने से ज्ञान प्राप्ति और वृद्धि के साथ-साथ उन में बतलाये हुए आत्मकल्याणकारी मार्ग का आचरण करने से सम्यग्ज्ञदर्शन सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र की प्राप्ति होगी । अतः यह: बात निर्विवाद है कि साक्षात् तीर्थंकर भगवन्तों तथा उन की अनुपस्थिति में उन की प्रतिमा की उपासना भक्ति से ही जीव की मुक्ति पाना संभव है। अन्य किसी भी प्रतीक मूर्ति ( Symbol) अथवा दृश्य-अदृश्य व्यक्ति की उपासना से मुक्ति पाना संभव नहीं है ।
कहा भी है कि सम्यग्दर्शन- ज्ञान चारित्राणि मोक्ष मार्गः
अर्थात् - सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र तीनों मिलकर मोक्ष का मार्ग है । व्याख्या 1 जिनवचनस्य यथावदवगमः सम्यग् ज्ञानम् ।
2 इदमित्यमेव इति तस्य श्रद्धाणं सम्यग्दर्शनम् ।
3 तदुक्तस्य यथावदनुष्ठानं सम्यक् चारित्रम् |
एतद् रत्नत्रय नाम । अस्य सम्प्राप्ती सर्वकर्मविप्रमोक्ष- लक्षणो मोक्ष:( यापनीय शाकटायनाचार्य स्त्री- निर्वाण केवली भुक्ति प्रकरणे ) ।
अर्थात् 1 - श्री वीतराग सर्वज्ञ जिनेश्वर परमात्मा के वचन यथावत जानना सम्यग्ज्ञान है ।
2- श्री वीतराग सर्वज्ञ जिनेश्व-प्रभुने जैसे फरमाया है वह सर्वथा सत्य है । ऐसी श्रद्धा सम्यग्दर्शन है।.
3 - श्री वीतराग सर्वज्ञ तीर्थंकर प्रभु ने जैसा फरमाया है वैसा ही आचरणमें लाना सम्यक् चारित्र है ।
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र का नाम रत्नत्रय है । इस ( रत्नत्रय ) की प्राप्ति से सर्व कर्मों का क्षय हो जाना मोक्ष है ।
इन तीन कारणों के बिना व्यक्ति वस्तु के सत्य-स्वरूप को समझने प्रथवा कहने में अयोग्य होता है ।
1 – अज्ञान से, 2 -- राग और द्वेष, 3 - अज्ञान और राग द्वेष से
1- कोई भी व्यक्ति अज्ञानी है, वस्तु के स्वरूप को ठीक-ठीक नहीं जानता । वह अज्ञानवश वस्तु के स्वरूप को यथावत् कदापि न जान पायेगा और न वह कह ही पायेगा |
2. ( अ ) कोई भी व्यक्ति चाहे वह ज्ञानवान क्यों न हो, रागवश असत्या को सत्य, अशुद्ध को शुद्ध, बुरे को भला कहेगा । अथवा
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