SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 177 नहीं परन्तु राजप्रश्नीय , जीवाजीवाभिगम, स्थानांग, भगवती सूत्र आदि मूल जैनागमों में वर्णित देवलोकों में, असुर भवनों में, मेरु आदि पर्वतों में, नंदीश्वर द्वीप में, और व्यंतर देवों के नगरों आदि में विद्यमान शाश्वत जिनप्रतिमओं को भी वन्दन किया है। [यह स्थावर तीर्थ की भक्ति हुई । भारतीय संस्कृति अध्यात्म प्रधान है। आत्मा को परमात्मा बनाने के लिए अनेक प्रकार के साधन या धर्म भारतीय मनिशियों ने बतलाये हैं। उनमें महापुरुषों का नाम स्मरण, उनकी भक्ति, पूजा, गुणानुवाद, स्तुति, प्रार्थनादि महत्व के माने गए हैं। क्योंकि हम परमात्मा बनना चाहते हैं । तो परमात्मा के प्रति हमारा अत्याधिक आक-- र्षण, प्रेम, तदरूप होना बहुत आवश्यक है । वह अनुराग अनेक रूपों से प्रगट होता है। सच्ची भक्ति भगवान के निकट भक्त को पहुंचाती है। गुणी बनने का सच्चा और सरस उपाय यही है कि देव-गुरु के प्रति हमारी आदर भावना हो। गुणानुराग के साथ-साथ गुण ग्रहण की भावना हो ।' महापुरुषों का ध्यान हमें उनके प्रगट हुए गुणों या स्वरूप का भान कराता है। हम में जो ज्ञानादि गुण छिपे या दबे पड़े हैं वे परमात्मा में प्रगट या व्यक्त हैं। इसलिए उनके स्मरण से हमारा वास्तविक स्वरूप सामने आ जाता है और जिन उपायों से उन्होंने आत्मविकास तथा स्वरूपोपलब्धि प्राप्त की है वह मार्ग भी हमारे जानने में आ जाता है और तभी हम उस मुक्तिमार्ग के प्रति अग्रसर होने का प्रयत्न भी कर सकते हैं। जिस तरह नाम का माहात्म्य है उसी तरह महापुरुषों से सम्बन्धित स्थानों का भी है । वे जिस भूमि पर जन्में, दीक्षा ली, साधना की, विशिष्ट ज्ञान प्राप्त किया तथा निर्वाण पधारे वे सब स्थान हमारे आत्मकल्याण में परमसहायक होने से कल्याणक भूमि कहे जाते हैं । जिस महीने या तिथि में महापुरुषों के जन्म, निर्वाणादि हुए हों वह तिथि कल्याणक तिथि कही जाती है । तपश्चर्या आदि के द्वारा उस तिथि की आराधना की जाती है। महापुरुषों के सम्बन्धित स्थानों को तीर्थ मानते हुए उन स्थानों की यात्रा करके आत्मा में शुभ भावों की वृद्धि की जाती है । उन स्थानों में रहते हुए आत्मा को विशुद्ध और निर्मलता के लक्ष्यवाले को अपने ध्येय की सिद्धि बहुत जल्दी और अधिक प्रमाण में हो सकती है। क्योंकि वहां के पुद्गुल परमाणु और वायुमंडल शांत और पवित्र होते हैं। वहां जाने पर और रहते हुए उन स्थानों से संबन्धित महापुरुषों का सहज ही स्मरण हो आता है और उनकी पूजा, भक्ति, गुणगान करने से आत्मा में अपूर्व भावोल्लास और आनन्द छा जाता है। प्राणियों को शारीरिक अथवा मानसिक मलिनता सदा उद्भव होती 6-जिन स्वरूप पाई जिन आराधे ते सही जिनबर होवे रे। ___ईली भृग ने चटकाये, ते भृगी जग जोवे रे ।। (आनन्दधन) 7-जिन उत्तम गुण गावतां, गुण आवे जिन अंग ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003237
Book TitleJain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1984
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy