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कघं जिबिंबदसणं पढम-सम्मत्त प्पत्तीए कारण ? णिवत्तणिकाचिस्स वि *मिच्छत्तादि-कम्मकलावस्स खयदसणादो (जीवस्थान सम्यक्त्वोत्पत्ति चूलिका सूत्र
22 धवला) शंका--जिनप्रतिमा दर्शन प्रथम सम्यक्त्व की उत्पत्ति का कारण कैसे है ?
समाधान-जिनप्रतिमा का दर्शन करने से निधत्ति और निकाचित मिथ्यात्व आदि कर्मकलाप का क्षय देखा जाता है। इसलिए उसे प्रथम सम्यक्त्वोत्पत्ति का कारण कहा है।
सारांश यह है उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि श्वेताम्बर आम्नाय के समान ही दिगम्बरों की प्राचीन पूजा पद्धति एवं विधिविधान में सवोपचारी अष्टोपचारी पंचोपचारी पंचकल्याणक आदि पूजाओं का समावेश है और पुरुषों के समान ही स्त्रियों को भी जिनप्रतिमा अभिषेक, विलेपन, पुष्पपूजा आदि का भी विधान है।
1-जिनप्रतिमा की सर्वोपचारी पूजा के उपकरणों तथा द्रव्यों की सूचि
(1) मणिमय कलश-सोने के, चाँदी के और सोने-चाँदी आदि अनेक प्रकार के कलश-अभिषेक के लिए।
(2) अभिषेक-(स्नान के लिए) जल, घी, दूध, दही, इक्ष रस, सर्वोषध मिश्रित जल, सुगंधित पदार्थों से मिश्रित जल, अर्ध्य पूजा में जलधारा आदि ।
(३) विलेपन-केसर, चंदन, कपूर, अम्बर आदि मिश्रित सुगंध पदार्थों से जिनप्रतिमा पर विलेपन व तिलक (टिक्की)।
(4) पुष्प-नाना प्रकार के वनस्पतिपरक सचित फूल तथा सोने चाँदी, रत्नों के अचित पुष्प।
(5) पुष्प पुज व पुष्पमालाए (हार)। (6) अक्षत...(चावल) तथा सच्चे मोती।
(7) दीप-शुद्ध घी के दीपकों की पंक्तियाँ, घी के दीपकों से आरती, व दीप।
(8) फल-नाना प्रकार के सचित-अचित मीठे, पक्के, सुन्दर आम्र, बिजीरा, संगतरे, अनार, सुपारी आदि फल ।
(9) पत्र-वृक्षों के नाना प्रकार के पत्ते ।
(10) अलंकार-सोने, मणियों, रत्नों आदि के मुकुट, कुडल, मोतियों 'रत्नों, फूलों आदि की मालायें तथा वस्त्र ।
(11) तिलक-तीर्थंकर प्रतिमा के मस्तक पर रत्न जड़ित स्वर्ण
तिलक ।
(12) धूप-चंदन, अगर, शिलारस, अम्बर आदि सुगन्धित द्रव्यों से बनायीं गयी धूपवत्तियां तथा धूप-दानियाँ ।
(13) नाटक-गीत, नृत्य, वाजित्र, नाटकादि (जिनप्रतिमा) के सम्मुख -नाना प्रकार से नृत्य तथा नाटक ।
(14) अष्ट मंगल-रत्नों के स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्दावर्त, वर्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्ययुगल और दर्पण ।
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