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________________ सत्याग्गेमुसलजतग-, अनर्थदंड गुणव्रत चार प्रकार के है-अपध्यान, पापोपदेश, हिस्रप्रदान तणकट्ठे मंतमूलभेसज्जे । व प्रमादाचरण इनमें से हिंस्रप्रदान व प्रमादाचरण अति सावध होने से दिन्ने दवाविए वा, उसका स्वरूप दो गाथा द्वारा बताते हैं । प्रथम-हिंस्रप्रदान-शस्त्र, अग्नि, पडिक्कमे देसिअं सव्वं ||२४|| मुसल, हल आदि, चक्की आदि यंत्र, अनेक प्रकार के तृण, काष्ठ, मंत्र, मूल और औषधि के विषय में दूसरों को देते हुए व दिलाते हुए दिवस संबंधी जो अतिचार लगे हो उन सबसे मैं पीछे हटता हुँ ||२४|| ण्हाणुव्वट्टण-वन्नग प्रमादाचरण-स्नान, पीठी चोलना, मेहंदी लगाना, चित्रकारी करवाना, विलेवणे सद्द-रूव-रस-गंधे । लेपन करना, आसक्तिकारक शब्द, रूप, रस, गंध का उपभोग, वत्थासण-आभरणे, वस्त्र-आसन तथा अलंकारों में तीव्र आसक्ति से दिवस संबंधी लगे हुए पडिक्कमे देसि सव्वं ।।२५|| अशुभ कर्म से मैं पीछे हटता हूँ ||२५|| कंदप्पे कुक्कुइओ, अनर्थदंड नामक तीसरे गुणव्रतमें लगे हुए पाँच अतिचार १) कामोत्तेजक मोहरि-अहिगरण-भोगअइरित्ते । शब्द प्रयोग-कंदर्प २) नेत्रादि की विकृत चेष्टा (सामनेवाले को हास्य दंडम्मि अणट्ठाए, उत्पन्न कराना)-कौत्कुच्य ३) अधिक बोलना, वाचालता ४) हिंसक तइअम्मि गुणव्वए निंदे ||२६|| साधनों को तैयार रखना, जैसे ऊखल के पास मूसल रखाना ५) भोग के साधनों की अधिकता आदि के कारण लगे हुए अतिचारों की मैं निंदा करता हूँ ||२६|| तिविहे दुप्पणिहाणे, (१-२-३) मन-वचन-काया के दुष्प्रणिधान (अशुभ प्रवृत्ति) ४) सामायिकमें अणवट्ठाणे तहा सइविहूणे । स्थिर न बनना-चंचलता-अनादर सेवन तथा ५) सामायिक समय का सामाइय वितहकए, विस्मरण, यह पाँच अतिचार प्रथम शिक्षाव्रत सामायिक में लगे हों, पढमे सिक्खावए निंदे ॥२७॥ उनकी मैं निंदा करता हूँ ||२७|| चित्र (समझ-) गाथा २४-२५-२६ : अनर्थदंड विरमणव्रतमें हिंस्रप्रदान तथा प्रमादाचरण के प्रकार बताये हैं। अतिचारों में प्रेमिका को फूल देकर कामचेष्टा करता हुआ मनुष्य कंदर्पमें दिखाया है । तथा अन्य को हँसाना, विचित्र चेष्टा करना, पशुओं के मुखौटे पहने हुए मनुष्य कौत्कुच्यमें दिखाये हैं । लोक आकर्षण के लिए की हुई निरर्थक चेष्टा होने से अनर्थदंड में ली है । अधिकरण में पापप्रवृत्ति के लिए तैयार हालत में रखे हुए घंटी तथा उदुखल बताये गये हैं। अंतिम विभाग में वर्तमानकाल में अत्यंत व्यापक बन चूके हुए और जनमानस में पापप्रवृत्तिरूप नहीं माने जा रहे अनर्थदंड के भेद बताये गये हैं । इस विभाग में कोम्प्युटर से संलग्न रमते-चेटिंग, सर्किंग आदि, स्विमींग पुल, फ्रिज, टी.वी. पत्ते की जोड, हाउझी, टेप, थियेटर, रेसकोर्स (घोडदोड) आदि जुएं के भेद, होटल, सर्कस, टुरिस्ट स्पोट (प्रवासन के स्थल), घर में अद्यतन ढंग का फर्निचर, क्रिकेट आदि के खेल में दिलचस्पी से प्रवृत्ति आदि दिखाये हैं । क्लिष्ट कर्मबंध के कारणभूत इन अनर्थदंडों को त्यागकर आत्मकल्याण और जगतकल्याण की अनगिनत प्रवृत्तियों में लग जाना चाहिये। Jain Education international For Prival9Rsonal use only www.jainelibrary.org
SR No.003233
Book TitlePratikraman Sutra Sachitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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